लब तेरे आज़ाद नहीं अब
ज़बां पर पड गये हैं ताले
न अब है ये जिस्म ही तेरा
न होगी अब जान भी तेरी
देख कि आहन-गर की दुकां अब
ठंडी राख का ढेर बनेगी
हाथों में पड़ जायेगी बेड़ी
पाओं में ज़ंजीरें होंगी
जिस्म ओ ज़बां की मौत है अब
सच का होता क़त्ल है अब
अब ये बाज़ी फिर ना बिछेगी
अब तो चुप हर शय चलेगी
– स्वाति सानी “रेशम”
زباں پر پڈ گیے ہیں تالے
نہ اب ہے یہ جسم ہی تیرا
نہ ہوگی اب جان بھی تیری
دیکھ کہ آہن گر کی دکاں اب
ٹھندی راکھ کا ڈھیر بنےگی
ہاتھوں میں پڈ جایگی بیڈی
او پاؤں مین زنجیریں ہوں گی
جسم و زباں کی موت ہے اب
سچ کا ہوتا قتل ہے اب
اب یہ باجی پھر نہ بچھے گی
اب تو چپ ہر شے چلے گی
-سواتی ثانی ریشؔم