GaoN ka wo band darwaaza

फिर से

गाँव की एक गली जो नदी की तरफ़ मुड़ती है
वहीं रहता है वो चौराहे पे
ताकता रहता है रहगुज़र
शायद वो आएँ
जो छोड़ कर चल दिए थे एक दिन अचानक
पलट कर देखा तो था घर को मगर
जब चल पड़े थे
बंद कर सारे किवाड़ और खिड़कियाँ
सोचता है वो
शायद आएँ दोबारा
और खोलें फिर से
उन बंद दरवाज़ों और खिड़कियों को
कुछ धूल साफ़ हो
फिर चले ठंडी हवा आँगन से सड़क तक
और सड़क से आँगन तक
कोई सींचे उस एक सूखती टहनी को
जो लाचार सी आँगन के एक कोने में
अधमारी खड़ी है
कोई फिर दीप जलाए तुलसी पर
कोई तो आए
कोई तो आस दिलाए उस बरगद को
जो अटल खड़ा है चौराहे पर
उसी गली में जो नदी तरफ़ मुड़ती है

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