Aasim’s farewell address

Aasim finished his IGCSE exams yesterday and is looking forward to the long break (during which he has planned many activities).

He gave an impromptu farewell speech as the class valedictorian. A speech that makes me very proud.

 

क्या कहिये मुझे क्या याद आया

मजरूह की यह नज़म मुझे बेहद पसंद है। एक मीठा सा भोलापन और भीनी-भीनी खुशबू है इसमें जो मेरे अंदर बस गयी है इसे पढ़ने के बाद।

फिर शाम का आँचल लहराया

मग़रिब में वो तारा एक चमका,
फिर शाम का परचम लहराया
शबनम सा वो मोती इक टपका,
फ़ितरत ने आँचल फैलाया
नज़रें बहकी, दिल बहला,
क्या कहिये मुझे क्या याद आया
टीले की तरफ चरवाहे की,
बंसी की सदा हल्की हल्की
है शाम की देवी की चुनरी,
शानों से परी ढ़लकी ढ़लकी
रह रह के धड़कते सीने में,
अहसास की मय छलकी छलकी
इस बात ने कितना तड़पाया,
क्या कहिये मुझे क्या याद आया

— मजरूह सुल्तानपुरी