Life I know not

LIFE! I know not what thou art,
But know that thou and I must part;
And when, or how, or where we met
I own to me’s a secret yet.

Life! we’ve been long together,
Through pleasant and through cloudy weather;
‘Tis hard to part when friends are dear—
Perhaps ’twill cost a sigh, a tear;
—Then steal away, give little warning,
Choose thine own time;
Say not Good-night—but in some brighter clime
Bid me Good-morning.

— A L Barbauid

अब मत मेरा निर्माण करो

करीब 25 वर्षों के बाद मैंने “नीड़ का निर्माण फिर” का पुन:पठन प्रारंभ किया और पुस्तक में वर्णित यह पंक्तिया मन में मानों फिर गुंथ गईं. सो ईन्हें अपने निजी ड़ायरी मेंं न लिखते हुए यहाँ प्रेषित कर रही हूँ, इस उम्मीद से, कि कुछ और पाठ्यगणों (विशेषत:नई पीढ़ी) तक यह पहुंचें.

अब मत मेरा निर्माण करो
कुछ भी न अब तक बन पाया
युग युग बीते मैं घबराया
भूलो मेरी व्याकुलता को,
निज लज्जा का तो ध्यान करो.
इस चक्की पर खाते चक्कर,
मेरा तन मन जीवन जर्जर,
हे कुंभकार, मेरी मिट्टी को
और न अब हैरान करो.
कहने की सीमा होती है,
सहने की सीमा होती है,
कुछ मेरे भी वश में, मेरा
कुछ सोच समझ अपमान करो.

— हरिवंश राय बच्चन