मायाजाल

Dr. Zarina Sani
Dr. Zarina Sani

मायाजाल न तोड़ा जाये
लोभी मन मुझको ललचाये
मिल जाये तो रोग है दुनिया
मिल न सके तो मन ललचाये
मेरे अाँसू उनका दामन
रेत पे झरना सूखा जाये
ताश के महलों में हरदम
काँच की चूड़ी खनकी जाये
प्यार मुहब्बत रिश्ते नाते
‘सानी’ कुछ भी काम न अाये

— ज़रीना सानी

Dr. Zarina Sani wrote this when her 13 year old son* once told her that she wrote very tough Urdu and he could not understand it and that she should perhaps write for the common man.

*http://tariquesani.net/blog/2002/08/05/112/