میں زرد پتوں کی طرح تم سے لپٹتی جاؤں
-سواتی ثانی ریشم
तुम आओ खिजाँ की सर्द हवाओं की तरह
मैं ज़र्द पत्तों की तरह तुम से लिपटती जाऊँ
– स्वाति सानी ‘रेशम’
I write
तुम आओ खिजाँ की सर्द हवाओं की तरह
मैं ज़र्द पत्तों की तरह तुम से लिपटती जाऊँ
– स्वाति सानी ‘रेशम’
जज़्बातों को काग़ज़ पर नक़्श करती हूँ
मैं अक्सर अपनी चीख़ों को ज़ब्त करती हूँ
-स्वाति सानी “रेशम”
ساون کی بھیگی راتوں میں پیڑوں کی ٹھنڈی چھاؤں میں
لفظوں میں باندھا تھا جس کو کہاں وہ میرا گیت گیا
جمنا گنگا کے سنگم کی نیلی پیلی لہروں میں
خط میں میرے گیت تمہارے جیون کا سنگیت گیا
رات کی رانی کے سائے میں پورے چاند کی آدھی راتیں
دنیا سوتی ہم تھے جاگے، پیار ہمارا جیت گیا
کل سوچا کل مل لیں گے، آج یہ سوچا کل دیکھیں گے
تم سے ملنے کی چاہت میں سال یہ سارا بیت گیا
– سواتی ثانی ریشم
उन लमहों को गुज़रे भी अब एक ज़माना बीत गया
आधी अधूरी बातें कर के चला वो मेरा मीत गया
सावन की भीगी रातों में, पेड़ों की ठंडी छाओं में
लफ़्ज़ों में बांधा था जिस को कहाँ वो मेरा गीत गया
जमना गंगा के संगम की नीली पीली लहरों में
ख़त में मेरे गीत तुम्हारे जीवन का संगीत गया
रात की रानी के साये में पूरे चाँद की आधी रातें
दुनिया सोती, हम थे जागे प्यार हमारा जीत गया
कल सोचा, कल मिल लेंगे, आज ये सोचा कल देखेंगे
तुमसे मिलने की चाहत में साल ये सारा बीत गया
– स्वाति सानी ‘रेशम’
कोई गर पूछे की कौन थी वो तो तुम सिर्फ़ अहिस्ता से मुस्कुरा देना कहना कुछ नहीं ज़रा सी बात है यूँ तो कट जाते हैं याद है एक रोज़ जब उन्ही सब बातों को उसी छत पे पर तुम आ ना भी सको मगर, कौन है वो – स्वाति सानी “रेशम” |
کوئی گر پوچھے زرا سی بات ہے یوں تہ کٹ جاتے ہیں یاد ہے ایک روز جب ینھیں سب باتوں کو اسی چھت پے پر تم ٓ ن بھی سکو مگر، کون ہے وہ – سواتی ثانی ریشم |
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गाँव की एक गली जो नदी की तरफ़ मुड़ती है
वहीं रहता है वो चौराहे पे
ताकता रहता है रहगुज़र
शायद वो आएँ
जो छोड़ कर चल दिए थे एक दिन अचानक
पलट कर देखा तो था घर को मगर
जब चल पड़े थे
बंद कर सारे किवाड़ और खिड़कियाँ
सोचता है वो
शायद आएँ दोबारा
और खोलें फिर से
उन बंद दरवाज़ों और खिड़कियों को
कुछ धूल साफ़ हो
फिर चले ठंडी हवा आँगन से सड़क तक
और सड़क से आँगन तक
कोई सींचे उस एक सूखती टहनी को
जो लाचार सी आँगन के एक कोने में
अधमारी खड़ी है
कोई फिर दीप जलाए तुलसी पर
कोई तो आए
कोई तो आस दिलाए उस बरगद को
जो अटल खड़ा है चौराहे पर
उसी गली में जो नदी तरफ़ मुड़ती है
Aasim was a few months old and I use to sing to him so that he could sleep. Yes back then, I could sing. He would watch me sing with this toy in his hand, and with the gentle rocking of his swing, he would fall asleep.
This was his favourite song back then.
Aa chal ke tujhe main le ke chaluN ek aise gagan ke tale
jahaN gham bhee na hoN aasuN bhee na hoN bas pyar hi pyar pale.
https://youtu.be/-YAs2cQAiE8
On his 19th birthday today, my wish for him is that his world be filled with happiness always.
Kabhi dhoop khile, kabhi chhon mile
lambi si dagar na khale
jahan gham bhee na hoon aason bhee na hon
bas pyar hi pyar pale.
Happy 19th, betu.
गौरी। कुछ ५ साल की थी जब उसकी माँ इलाहबाद की गर्मियों की चपेट में आ गयी और २ दिन में ही इस दुनिया से चली गयीं उम्र इतनी नहीं थी कि सब कुछ समझ पाती, मगर पापा थे, भैया थे, दादी थीं, तीनों बुआ थीं. खयाल रखने वाले काफ़ी लोग थे। ज़िन्दगी इतनी बुरी भी नहीं थी। फिर कुछ सालों बाद उसके पापा की दुसरी शादी हो गयी। पापा नयी मम्मी के साथ रहने लगे और गौरी और उसके भैया इलाहबाद में चाचा चाची के साथ। कुछ दिन सब ठीक रहा, स्कूल भी ठीक ही चल रहा था दोनों भाई बहन छुट्टियों में पापा से भी मिल लेते थे। गौरी छठीं कक्षा में पहुंच गयी। फिर एक दिन अचानक ख़बर आयी – गौरी मर गयी।
मर गयी? कैसे मर गयी? कुछ भी तो नहीं हुआ था उसे।
पता चला किसी ने ड्रग्स की आदत लगवा दी थी उसे।
ओवर डोज़ ने उसकी जान ले ली।
गौरी मेरी ममेरी बहन थी
साल २०१५
अगर ठहरी फिर से ये नज़र
तो देख लूँगी आँख भर
फिर न जाने कब
सितारे ज़मीं पर बिखरें
अगर थमी कभी ये राह
तो पूछूँगी उससे
क्यों भागा करती है बेपरवाह
क्या जल्दी है गुज़र जाने की
अगर रुका कभी ये वक्त
तो गुज़ारिश करूँगी
ज़रा सा पलटने की
कुछ लम्हे दोबारा जीने की
–स्वाति
Turning back and looking at 2015.
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We had announced our wedding and you being Tarique’s brother, wanted to meet me. So I met you at a Cafe near Churchgate station at 7 PM and the bond that formed that evening was strong. We did have our disagreements in the beginning. You were that kind of person – strong and pig-headed at times. But you always were my brother-in-law and a brother to me.
You told me in our first meeting that you are an incorrigible romantic, and in the end you even managed to romance death, so much that she took you away leaving us completely shaken. I have no idea how life would be without you. How will we all fill the void that you have left. Who will I discuss Urdu Shairi with and how will I cope up when to every sher I write, there isn’t a reply in the form of another equally good couplet. What will I do now that I know you are not there at the other end of the phone. Tell me, is there some kind of Whatsapp up there? Tell me, Interstellar was right, that love and gravity will always transcend time and space. Just send me a signal and I will know that you are there in another dimension.
Here’s for you BIL. I am going to miss you terribly, Bhaijan, but I will not grieve your absence, your life deserves to be celebrated, not mourned.
ये करीने से उगाए हुये फूल पत्ते
कतार में खड़े सलामी देते पेड़
और मेनिक्युअर्ड लॉन
मुझे कब भाये कि तुम समझ बैठे
कि तुम मुझे पसंद आओगे
बोलो तो?
मुझे तो जंगल पसंद हैं
आज़ाद और बेखौफ़
मुझे बर्फ से ढकी पहाडियाँ
रोमांचित करतीं है
वो समंदर जो कभी ज्वार तो कभी भाटा
क्या वो मुझे नही बुलाता?
मेरी फितरत तो रही है
नंगे पाँव दौड़ लगाने की
गाउन और हाई हील्स में
मैं क्या चल पाती
मुझे ऊचीं उड़ानें पसंद है
मुझे तुम्हरी कैद कब भाती?
–स्वाति
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Aazadi (आज़ादी) is a poem written by Swati Sani, the picture used is for representation purposes only.