अपने घर से ज़रा दूर चले जाने पर फिर कई कई रोज़ घर ना आ पाने पर अपनों से मुलाक़ात न हो पाने पर किसी सूरजमुखी के खिलखिलाने पर सोंधी मिट्टी की ख़ुशबू याद आने पर माँ का भेजा अचार मिल जाने पर नानी के क़िस्सों की याद आने पर मिट्टी की ठंडी सुराही याद आने पर हूँ परेशान बहुत अपनी परेशानी पर महसूस हो रहा था कुछ टूटता था पर अरमाँ के टांग झूले पेड़ों की शाख पर खेलता था बचपन आँगन में पेड़ पर — स्वाति सानी “रेशम” |
اپنے گھر سے زرا دور چلے جانے پر اپنوں سے ملاقات نہ ہو پانے پر کسی سورج مکھی کے کھلکھلانے پر سوندھی مٹی کی خشبو یاد آنے پر ماں کا بھیجا اچار مل جانے پر نانی کے قسوں کی یاد آنے پر مٹی کی سراحی یاد آنے پر ہوں پریشان بہت اپنی پریشانی پر محسوس ہو رہا تھا کچھ ٹوٹتا تگا پر ارماں کے ٹانگ جھولے پیڈوں کی شاخ پر کھیلتا تھا بچپن آنگن کے پیڈ پر — سواتی ثانی ریشم |
Tag: “aazad nazm”
दोस्त (دوست)
कोई गर पूछे की कौन थी वो तो तुम सिर्फ़ अहिस्ता से मुस्कुरा देना कहना कुछ नहीं ज़रा सी बात है यूँ तो कट जाते हैं याद है एक रोज़ जब उन्ही सब बातों को उसी छत पे पर तुम आ ना भी सको मगर, कौन है वो – स्वाति सानी “रेशम” |
کوئی گر پوچھے زرا سی بات ہے یوں تہ کٹ جاتے ہیں یاد ہے ایک روز جب ینھیں سب باتوں کو اسی چھت پے پر تم ٓ ن بھی سکو مگر، کون ہے وہ – سواتی ثانی ریشم |
Photo Credits: Foter.com
Tanha
This aazad nazm is from a very old television serial “Tanha” I remember switching on the TV set just to listen to the beautiful title song written by Javed Akhtar. After a long search I finally found it on youtube.
देखिये तो लगता है
ज़िन्दगी की राहों में
एक भीड़ चलती है
सोचिये तो लगता है
भीड़ में हैं सब तन्हा
जितने भी ये रिश्ते हैं
काँच के खिलौने है
पल में टूट सकते है
एक पल में हो जाये
कोई जाने कब तन्हा
देखिये तो लगता है
जैसे ये जो दुनिया है
कितनी रंगी महफिल है
सोचिये तो लगता है
कितना ग़म हैं दुनिया में
कितना ज़ख्मी हर दिल है
वो जो मुस्कुराते थे
जो किसी को ख्वाबों में
अपने पास पाते थे
उनकी नींद टूटी है
और हैं वो अब तन्हा