हर रात चीखती है खामोशी
चाँद बेबस मुँह तकता है उसका
सहम कर छोटा होता जाता है
सिकुड़ कर बिलकुल ख्तम हो जाता है
काली रात में सन्नाटे भी कम बोलते है…
सहमा चाँद हौले से झाँकता है
चुप्पी सुन बहादुरी से सीना फैलाता है
और धीरे धीरे फूल कर वह कुप्पा हो जाता है
डरपोक चाँद बहादुरी की मिसाल बन जाता है