
जब सफर है इतना हसीं तो मंज़िल मिल ही जायेगी
हैं मुश्किल रास्ते मगर राह तो निकल ही आयेगी
हर रात चीखती है खामोशी चाँद बेबस मुँह तकता है उसका सहम कर छोटा होता जाता है सिकुड़ कर बिलकुल ख्तम हो जाता है काली रात में सन्नाटे भी कम बोलते है… सहमा चाँद हौले से झाँकता है चुप्पी सुन बहादुरी से सीना फैलाता है और धीरे धीरे फूल कर वह कुप्पा हो जाता है … Continue reading चाँद और चुप
आज शाम मैंने देखा छैल छबीला चाँदतुमने भी तो देखा होगा इस होली का चाँदझाँक झाँक कर ताक ताक कर बुला रहा था मुझको क्यों कर सता रहा चमकीला चाँदबुला रहा था चौबारे से चुपके चुपकेथा वो मेरा दिलबर एक सजीला चाँदमैंने भी तो घंटो कर ली बातें उससेतुमको भी तो सुनता होगा एक अकेला … Continue reading होली का चाँद
There is this thing about being, a fragile song that we all sing. And then darkness comes beckoning, for death is certain for all those living. Here I have a request sincere, when you are alone you must not fear. So even when I am gone, my dear, just look around and you will find … Continue reading After I am gone…
दिलों को पिरोने वाला अब वो तागा नहीं मिलता रिश्तों में नमीं प्यार में सहारा नहीं मिलता यूँ ही बैठे रहो, चुप रहो, कुछ न कहो लोग मिल जातें हैं दोस्त गवारा नहीं मिलता वो जिसे हम तका करते थे सहर तक अंधेरी रातों को अब वो सितारा नहीं मिलता रेत बंद हाथों से फिसलती … Continue reading ग़ज़ल
पुराने पन्नों वाली वो डायरी अक्सर ज़िन्दा हो जाती है, जब खुलती है मुस्कुराती है, पहले प्यार की हरारत खिलखिलाती है कर के खुछ शरारत रुलाती भी है वो एक कविता एक सूखा ग़ुलाब कुछ आँसुओं से मिटे शब्द… कुछ मीठी, कुछ नमकीन सी यादें निकल आतीं हैं जब बिखरे पीले पन्नों से मैं भूल … Continue reading यादें
कुछ नज़र नहीं आता बहुत धुंद है, ठंड़ है, कोहरा है यहाँ रास्ता तो दिखता है मगर क्या यहीं मुझे चलना है? आगे बढ़ना है? या ठहर जाना है? क्या कोई पगडंडी कहीं जुड़ती है? या कोई राह निकलती है कहीं? बहुत धुंद है, ठंड़ है, कोहरा है यहाँ कुछ भी नज़र नहीं आता मेरी … Continue reading तलाश
जब से तुम आये हो ऐ नये साल धूप कहीं खो सी गयी है सुर्ख गुलाब के इंतज़ार की आस भी अब खत्म हो गयी है सितारे दूर नील गगन में धरती को तकते चाँद उदास बेताब बादलों परे बिल्कुल अकेला ऐ नये साल इस बरस तुम कितने फीके हो सतरंगी, पचरंगी वेश छोड क्यों … Continue reading साल २०१२
ऐ नये साल बता, तुझ में नयापन क्या है हर तरफ ख़ल्क ने क्यों शोर मचा रखा है रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही आज हमको नज़र आती है हर बात वही आसमां बदला है अफसोस, ना बदली है जमीं एक हिन्दसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं अगले बरसों की तरह होंगे … Continue reading ऐ नये साल
This ghazal of Faiz Ahmed Faiz is beyond translation but I am attempting it nevertheless. The poem is a statement of politics and struggle of his times. न गवाओं नावके-नीमकश, दिले रेज़ा रेज़ा गवाँ दिया जो बचे हैं संग समेट लो, तने दाग़ दाग़ लुटा दिया मेरे चारगर को नवेद हो सफे दुशमनों को खबर … Continue reading Faiz – Na gavaon navak-e-neemkash