होली का चाँद

आज शाम मैंने देखा छैल छबीला चाँद
तुमने भी तो देखा होगा इस होली का चाँद
झाँक झाँक कर ताक ताक कर बुला रहा था
मुझको क्यों कर सता रहा  चमकीला चाँद
बुला रहा था चौबारे से चुपके चुपके
था वो मेरा दिलबर एक सजीला चाँद
मैंने भी तो घंटो कर ली बातें उससे
तुमको भी तो सुनता होगा एक अकेला चाँद
मैं ना कहती थी याद तुम्हें मैं आऊंगी
जब देखोगे आँगन में एक हठीला चाँद

– स्वाति सानी ‘रेशम’

آج شام میں نے دیکھا چھیل چھبیلا چاند
تم نے بھی تو چیکھا ہوگا اس ہولی کا چاند
جھانک جھانک کر تاک تاک کر بلا رہا تھا
مجھ کو کیوں کر ستا تہا چمکیلا چاند
بلا رہا تھا چوبارے سے چپکے چپکے
تھا وہ میرا دل بر ایک سجیلا چاند
میں نے بھی تو گھنٹوں کر لیں باتیں اس سے
تم کو بھی تو سنتا ہوگا ایک اکیلا چاند
میں نا کہتی تھی یاد تمہیں میں آوُں گی
جب دہکھو گے آنگن میں ایک ہٹھیلا چاند

سواتی ثانی ریشمؔ –

After I am gone…

There is this thing about being, a fragile song that we all sing. And then darkness comes beckoning, for death is certain for all those living. Here I have a request sincere, when you are alone you must not fear. So even when I am gone, my dear, just look around and you will find … Continue reading After I am gone…

ग़ज़ल

दिलों को पिरोने वाला अब वो तागा नहीं मिलता रिश्तों में नमीं प्यार में सहारा नहीं मिलता यूँ ही बैठे रहो, चुप रहो, कुछ न कहो लोग मिल जातें हैं दोस्त गवारा नहीं मिलता वो जिसे हम तका करते थे सहर तक अंधेरी रातों को अब वो सितारा नहीं मिलता रेत बंद हाथों से फिसलती … Continue reading ग़ज़ल

यादें

पुराने पन्नों वाली वो डायरी अक्सर ज़िन्दा हो जाती है, जब खुलती है मुस्कुराती है, पहले प्यार की हरारत खिलखिलाती है कर के खुछ शरारत रुलाती भी है वो एक कविता एक सूखा ग़ुलाब कुछ आँसुओं से मिटे शब्द… कुछ  मीठी, कुछ नमकीन सी यादें निकल आतीं हैं जब बिखरे पीले पन्नों से मैं भूल … Continue reading यादें

तलाश

कुछ नज़र नहीं आता बहुत धुंद है, ठंड़ है,  कोहरा है यहाँ रास्ता तो दिखता है मगर क्या यहीं मुझे चलना है? आगे बढ़ना है? या ठहर जाना है? क्या कोई पगडंडी कहीं जुड़ती है? या कोई राह निकलती है कहीं? बहुत धुंद है, ठंड़ है,  कोहरा है यहाँ कुछ भी नज़र नहीं आता मेरी … Continue reading तलाश

साल २०१२

जब से तुम आये हो ऐ नये साल धूप कहीं खो सी गयी है सुर्ख गुलाब के इंतज़ार की आस भी अब खत्म हो गयी है सितारे दूर नील गगन में धरती को तकते चाँद उदास बेताब बादलों परे बिल्कुल अकेला ऐ नये साल इस बरस तुम कितने फीके हो सतरंगी, पचरंगी वेश छोड क्यों … Continue reading साल २०१२

ऐ नये साल

ऐ नये साल बता, तुझ में नयापन क्या है हर तरफ ख़ल्क ने क्यों शोर मचा रखा है रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही आज हमको नज़र आती है हर बात वही आसमां बदला है अफसोस, ना बदली है जमीं एक हिन्दसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं अगले बरसों की तरह होंगे … Continue reading ऐ नये साल

Faiz – Na gavaon navak-e-neemkash

This ghazal of Faiz Ahmed Faiz is beyond translation but I am attempting it nevertheless. The poem is a statement of politics and struggle of his times. न गवाओं नावके-नीमकश, दिले रेज़ा रेज़ा गवाँ दिया जो बचे हैं संग समेट लो, तने दाग़ दाग़ लुटा दिया मेरे चारगर को नवेद हो सफे दुशमनों को खबर … Continue reading Faiz – Na gavaon navak-e-neemkash

मरीचिका

मरीचिका हर तूफान के बाद लहलहने लगती है सुहाने सपनों सी बुलाने लगती है पास, और पास अपने पाँव निर्थरक ही बढ़ उठते हैं उस ओर पर वह परे हटती जाती है और खो जाती है रेत के एक और अंधड में फिर कभी किसी तूफान के बाद आस दिलाने के लिये

Still I Rise

This is a poem by Maya Angelou that I *had* to record on my blog. Rarely does one gets to read expressions like these.   You may write me down in history With your bitter, twisted lies, You may trod me in the very dirt But still, like dust, I’ll rise. Does my sassiness upset … Continue reading Still I Rise