मरीचिका
हर तूफान के बाद
लहलहने लगती है सुहाने सपनों सी
बुलाने लगती है पास, और पास अपने
पाँव निर्थरक ही बढ़ उठते हैं उस ओर
पर वह परे हटती जाती है
और खो जाती है
रेत के एक और अंधड में
फिर कभी किसी तूफान के बाद
आस दिलाने के लिये
I write
मरीचिका
हर तूफान के बाद
लहलहने लगती है सुहाने सपनों सी
बुलाने लगती है पास, और पास अपने
पाँव निर्थरक ही बढ़ उठते हैं उस ओर
पर वह परे हटती जाती है
और खो जाती है
रेत के एक और अंधड में
फिर कभी किसी तूफान के बाद
आस दिलाने के लिये
घुंघरू के मध्यम बोलों ने
कुछ कहा फुसफुसाकर
गुनगुनाकर फिर होठों ने
हौले हौले माहौल बनाया
और तुम्हारी आँखों की गहराइयों में
मैने अपने आप को
डूबते, उतराते, मदमाते पाया
जाने कब हुयी सुबह
सूर्य किरण ने घटाओं से झांक कर देखा
घुंघरू के बोलों का तीव्रतर हो थम जाना
होठों पर छिडे तरानों का कंठ ही में घुल जाना
आँखों की विशाल गहराई का
पलकों के भीतर छुप जाना
और टूटना एक स्वपन का
laughter
and the joy
that adorns your face
takes away
the darkest of
my fears
The smile
that begins
as a sparkle
in your eyes
reaches your tender lips
makes me feel warm
all over
and so loved
Thank you, my love
for loving me
the way you do
I can not even
begin to imagine
my life without you.
आज फिर तुम्हें देखकर खयाल आया
कि हमारे बीच ये कैसा नाता है
जिसे तोड़ना मुनासिब नहीं
इस लंबे सफर में
मेरे हमकदम –
हम ज़रूर कुछ देर रुक जातें है
किसी मकाम पर
मगर फिर निकल पड़ते हैं
अगले पड़ाव को …
इक दूसरे के सहारे बिना
हम क्या करेंगे
मेरे हमसफर, मेरे हमइनाँ
जब किसी दिन किसी एक की
जीवन समिधा चुक जायेगी ?
अाहट हुयी
हौले-हौले कदमों की
दिल की हर तह में उतरती चली गयी
एक नशा सा छा गया
वास्तविकता से स्वपन की दूरी
कम हो चली
लगा, हर पल चाँदनी से सुसज्जित है
चमकते, दमकते ये पल
मेरी स्वपननगरी ने अाज फिर
एक नये ताजमहल का निर्माण किया
श्वेत, शुद्ध, पाकीज़ा
मेरा अपना महल -ताजमहल
कदमों की अाहट न जाने कैसे
इतने पास अा गयी अचानक
स्वर तीव्र हो गये,
अाहट, अाहट न रही
एक धमाका बन गयी
ख्वाब मेरे टूट गये
वास्तविकता के ताने बाने
रेशमी ज़ंजीर बन गये
छा गयी फिर काले बादलों की िसयाही
मेरे स्वपन निर्मित ताजमहल पर
दरक गया ताजमहल,
टूट गया मेरा ताजमहल
Beautiful, white, pristine.
How lovely, thought Alladin when she cast a longing glance at him. Could she be mine?
And then he noticed the tail, but it was too late, she was already turning black.
Alladin captured by Tarique
December 1990.
During the ISABS workshop on the first day, participants were asked to introduce themselves. This was my introduction. It still is.
पंथी एकाकी जीवन की
मैं यूँ पथ पर चलते चलते
ढूडूँ खुद को हर ओर छोर
हर नहर ड़गर आँगन अंबर
पतझड के एक झंकोरे से
पाती हूँ मैं, उड़ उड़ जाती
फिर गिर पड़ कर भी
हूँ उठ जाती, औ हौले से
आँचल के छोटे कोने से
कोर नयन की सहलाती
और ठहर सहर के कोने पर
लिखती दूजी पाती, स्वाति
-स्वाति सानी ‘रेशम’
From the diary of 1986
सर्दियों के घने कुहाँसे में अक्सर
धुंदला सा एक चेहरा उभरता है
उस चेहरे को एक बार फिर
करीब से देखने को जी करता है
और इसी कोशिश में अक्सर
खिड़कियों के काँच जख्म दे जातें हैं
रूह सहम सी जाती है
और वह धुंदलाता चेहरा
परछाईं बन अंधकार में
फिर गुम हो जाता है
From the pages of my very old diary. I wrote this one 23 years back, in 1988.
उजड़े मकानों के साये में,
उसी राह के मोड़ पर
वह अचानक टकराना
नज़रें मिलाना
परिचय की कौंध का पल को उभरना
और लुप्त हो जाना
अनपहचाने चेहरों का लिबास ओढ़े
आहिस्ता से गुज़र जाना
फिर किसी विध्वंसक ज्वालामुखी का फ़ूटना
मन के किसी कोने में, उस गर्म उबलते लावे में
अतीत का पिधलना, उबलना और पथरा जाना