घुंघरू के मध्यम बोलों ने
कुछ कहा फुसफुसाकर
गुनगुनाकर फिर होठों ने
हौले हौले माहौल बनाया
और तुम्हारी आँखों की गहराइयों में
मैने अपने आप को
डूबते, उतराते, मदमाते पाया
जाने कब हुयी सुबह
सूर्य किरण ने घटाओं से झांक कर देखा
घुंघरू के बोलों का तीव्रतर हो थम जाना
होठों पर छिडे तरानों का कंठ ही में घुल जाना
आँखों की विशाल गहराई का
पलकों के भीतर छुप जाना
और टूटना एक स्वपन का
आज फिर तुम्हें देखकर खयाल आया
कि हमारे बीच ये कैसा नाता है
जिसे तोड़ना मुनासिब नहीं
इस लंबे सफर में
मेरे हमकदम –
हम ज़रूर कुछ देर रुक जातें है
किसी मकाम पर
मगर फिर निकल पड़ते हैं
अगले पड़ाव को …
इक दूसरे के सहारे बिना
हम क्या करेंगे
मेरे हमसफर, मेरे हमइनाँ
जब किसी दिन किसी एक की
जीवन समिधा चुक जायेगी ?
अाहट हुयी
हौले-हौले कदमों की
दिल की हर तह में उतरती चली गयी
एक नशा सा छा गया
वास्तविकता से स्वपन की दूरी
कम हो चली
लगा, हर पल चाँदनी से सुसज्जित है
चमकते, दमकते ये पल
मेरी स्वपननगरी ने अाज फिर
एक नये ताजमहल का निर्माण किया
श्वेत, शुद्ध, पाकीज़ा
मेरा अपना महल -ताजमहल
कदमों की अाहट न जाने कैसे
इतने पास अा गयी अचानक
स्वर तीव्र हो गये,
अाहट, अाहट न रही
एक धमाका बन गयी
ख्वाब मेरे टूट गये
वास्तविकता के ताने बाने
रेशमी ज़ंजीर बन गये
छा गयी फिर काले बादलों की िसयाही
मेरे स्वपन निर्मित ताजमहल पर
दरक गया ताजमहल,
टूट गया मेरा ताजमहल