आज फिर तुम्हें देखकर खयाल आया
कि हमारे बीच ये कैसा नाता है
जिसे तोड़ना मुनासिब नहीं
इस लंबे सफर में
मेरे हमकदम –
हम ज़रूर कुछ देर रुक जातें है
किसी मकाम पर
मगर फिर निकल पड़ते हैं
अगले पड़ाव को …
इक दूसरे के सहारे बिना
हम क्या करेंगे
मेरे हमसफर, मेरे हमइनाँ
जब किसी दिन किसी एक की
जीवन समिधा चुक जायेगी ?
Category: Prose n Poetry
I write
वही ताजमहल
अाहट हुयी
हौले-हौले कदमों की
दिल की हर तह में उतरती चली गयी
एक नशा सा छा गया
वास्तविकता से स्वपन की दूरी
कम हो चली
लगा, हर पल चाँदनी से सुसज्जित है
चमकते, दमकते ये पल
मेरी स्वपननगरी ने अाज फिर
एक नये ताजमहल का निर्माण किया
श्वेत, शुद्ध, पाकीज़ा
मेरा अपना महल -ताजमहल
कदमों की अाहट न जाने कैसे
इतने पास अा गयी अचानक
स्वर तीव्र हो गये,
अाहट, अाहट न रही
एक धमाका बन गयी
ख्वाब मेरे टूट गये
वास्तविकता के ताने बाने
रेशमी ज़ंजीर बन गये
छा गयी फिर काले बादलों की िसयाही
मेरे स्वपन निर्मित ताजमहल पर
दरक गया ताजमहल,
टूट गया मेरा ताजमहल
Fairytail
Beautiful, white, pristine.
How lovely, thought Alladin when she cast a longing glance at him. Could she be mine?
And then he noticed the tail, but it was too late, she was already turning black.
Alladin captured by Tarique
Lovers
दूजी पाती
December 1990.
During the ISABS workshop on the first day, participants were asked to introduce themselves. This was my introduction. It still is.
पंथी एकाकी जीवन की
मैं यूँ पथ पर चलते चलते
ढूडूँ खुद को हर ओर छोर
हर नहर ड़गर आँगन अंबर
पतझड के एक झंकोरे से
पाती हूँ मैं, उड़ उड़ जाती
फिर गिर पड़ कर भी
हूँ उठ जाती, औ हौले से
आँचल के छोटे कोने से
कोर नयन की सहलाती
और ठहर सहर के कोने पर
लिखती दूजी पाती, स्वाति
-स्वाति सानी ‘रेशम’
अक्सर
From the diary of 1986
सर्दियों के घने कुहाँसे में अक्सर
धुंदला सा एक चेहरा उभरता है
उस चेहरे को एक बार फिर
करीब से देखने को जी करता है
और इसी कोशिश में अक्सर
खिड़कियों के काँच जख्म दे जातें हैं
रूह सहम सी जाती है
और वह धुंदलाता चेहरा
परछाईं बन अंधकार में
फिर गुम हो जाता है
साये
From the pages of my very old diary. I wrote this one 23 years back, in 1988.
उजड़े मकानों के साये में,
उसी राह के मोड़ पर
वह अचानक टकराना
नज़रें मिलाना
परिचय की कौंध का पल को उभरना
और लुप्त हो जाना
अनपहचाने चेहरों का लिबास ओढ़े
आहिस्ता से गुज़र जाना
फिर किसी विध्वंसक ज्वालामुखी का फ़ूटना
मन के किसी कोने में, उस गर्म उबलते लावे में
अतीत का पिधलना, उबलना और पथरा जाना
चाँद का आइना
कल शब बड़ी देर तक निकला रहा चाँद चाँदनी गिरती ओस को पिरोती रही रात घिरती रही कल शब तुम्हारी अलसाई बाहों में आने को मचलता रहा चाँद बेदम ठंड़ी साँसो को गर्म करता रहा चाँद कल शब बहुत उदास था चाँद सितारे थे तुम्हारी आगोश में राह तकता रहा चाँद -स्वाति सानी ‘रेशम’ |
کل شب بڑی دیر تک نکلا رہا چاند
چاندنی گرتی اوس کو پروتی رہی رات گھرتی رہی کل شب تمہاری السائی باہوں مین آنے کو مچلتا رہا چاند بے دم ٹھنڈی سانسوں کو گرم کرتا رہا چاند کل شب بہت اداس تھا چاند ستارے تھے تمہاری آغوش میں راہ تکتا رہا چاند ؔسواتی ثانی ریشم – |
My love. Tarique.
मेरी हर बात शुरू तुमसे, खत्म तुमसे,
मेरी हर साँस, हर जुनूं तुमसे.
One evening in the month of May
On a hot day in the month of May this year standing by the lakeside trying to soothe myself with the slight breeze that blew over the cool, deep waters of the lake I wrote these lines: