Meri pyaas ko samjho tum… dariya mere andar hai

मेरी प्यास को समझो तुम
दरिया मेरे अंदर है

कितने ज़ख्मों को सींचूँ मैं
जिस्म का पैकर जर्जर है

यादें मेरे माज़ी की
बौछारों का नश्तर है

सहरा सहरा चीख उठा है
गुलशन गुलशन बंजर है

साहिल तन्हा बैठा है
प्यास भी एक समंदर है

एक तबस्सुम होंटों पर
अपनी रूह का ज़ेवर है

जब जब डूबा सूरज है
खूँ में नहाया सागर है

धूप के सोज़ को क्या जाने
जिस के सर पर छप्पर है

मेरे दिल को तोड़ोगे ?
शीशा नहीं ये पत्थर है

  میری پیاس کو سمجھو تم
 دریا میرے اندر ہے

کتنے زخموں کو سینچوں  میں
جسم کا پیکر جرجر ہے

یادیں میرے ماضی کی
بوچھاروں کا  نشتر ہے

صحرا صحرا چیخ اٹھا ہے
گلشن گلشن بنجر ہے

ساحل تنہا بیٹھا ہے
پیاس بھی ایک سمندر ہے

ایک تبسم   ہونٹوں پر
اپنی روح کا زیور ہے

جب  جب ڈوبا سورج ہے
خوں  میں نہایا  ساگر ہے

 دھوپ کے سوز کو کیا جانے
جس کے سر پر  چھپر ہے

میرے دل کو توڑو گے ؟
شیشہ  نہیں یہ پتھر ہے

Photo by Dave Hoefler on Unsplash

Kuch aur aasmaN par ham taank deN sitare

सूरज की रोशनी में बिखरे हुए थे सारे
जो रात की सियाही में साथ थे हमारे

आओ फ़रोंजां कर दें आँसू के कुछ शरारे
कुछ और आसमां पर हम टाँक दें सितारे

मिलने का वा’दा कर के फिर चाँद क्यूँ न आया
नद्दी थी राह तकती गिन गिन के रात तारे

करवट बदलते दुख की वहशत ज़दा खमोशी
कमरे की खिड़कियों से फिर दफ़अ’तन पुकारे

तारों के ख्वाब सारे सजते हैं शाम ही से
देरीना ख्वाहिशों से निखरे हैं माह पारे

वीरान सी गली में थीं रौनकें हजारों
जो ख्वाब रात देखे वो साथ थे हमारे

चाहा था हम ने बाहों में ले लें चाँद ही को
तारों की अंजुमन को बिन फर्श पर उतारे

किस गाम जा के बरसें किस छत पे भीग जायें
घर ढूंढते नगर में आवारा अब्र पारे

–स्वाति सानी “रेशम”

سورج کی روشنی میں بکھرے ہوئے تھے سارے
جو رات کی سیاہی میں ساتھ تھے ہمارے

آؤ فروزاں کر دیں آنسو کے کچھ شرارے
کچھ اور آسماں پر  ہم  ٹانک دیں ستارے

ملنے کا وعدہ کر کے پھر چاند کیوں نہ آیا
ندی تھی راہ تکتی گن گن کے رات تارے

کروٹ بدلتے دکھ کی وحشت زدہ خموشی
کمرے کی کھڑکیوں سے پھر  دفعتاً پکارے

تاروں کے خواب سارے سجتے ہیں شام ہی سے
دیرینہ خواہشوں سے نکھرے ہیں ماہ پارے

ویران سی گلی میں تھیں رونکیں ہزاروں
جو خواب رات دیکھے وہ ساتھ تھے ہمارے

چاہا تھا ہم نے بانہوں میں لے لیں چاند ہی کو
تاروں کی انجمن کو بن فرش پر اتارے

کس گام جا کے برسیں کس چھت پے بھیگ جائیں
گھر ڈھونڈتے نگر میں آوارہ ابر پارے

سواتی ثانی ریشمؔ —

Photo by Johannes Plenio on Unsplash

Abr jab wadiyoN pe chhaye thae

अब्र जब वादियों पे छाये थे
चाँद पर खामुशी के साये थे

सहमी सहमी सियाह रातों के
दीप आंधी में थरथराये थे

तन्हा रातों में भीगते नग़्मे
अब के बारिश ने गुनगुनाये थे

इस चमन के थे जितने क़िस्से वो
काँटों ने कलियों को सुनाये थे

जाने पहचाने चेहरे थे मौजूद
सर झुकाये, नज़र चुराये थे

जिंदा रहना भी हम ने सीख लिया
वक्त ने फन कई सिखाये थे

मुड़ के तकते थे बारहा हम को
आस किस बात की लगाये थे

– स्वाति सानी “रेशम”

ابر جب وادیوں پے چھائے تھے
چاند پر خامشی کے سائے تھے

سہمی سہمی سیاہ راتوں کے
دیپ آندھی میں ٹمٹمائے تھے

تنہا راتوں میں بھیگتے نغمے
اب کے بارش نے گنگنائے تھے

اس  چمن کے تھے  جتنے قصے وہ
کانٹوں نے کلیوں کو سنائے تھے

جانے پہچانے چہرے تھے موجود
سر جھکائے، نظر چرائے تھے

زندہ رہنا بھی ہم نے سیکھ لیا
وقت نے فن کئی سکھائے تھے

مڑ کے تکتے تھے بارہا ہم کو
آس کس بات کی لگائے تھے

سواتی ثانی ریشمؔ –

Photo by Anandu Vinod on Unsplash

Dil to fariyaad kiya karta hai

दिल तो फ़रियाद किया करता है
ज़ीस्त फ़रमान सुना देती है

शाख से फूल गिरा कर के हवा
तेरे आने का पता देती है

गुल को दो बूंद पिला कर शबनम
प्यास सहरा की बुझा देती है

गुनगुनाती हुई इक याद तिरी
बुझते शोलों को हवा देती है

प्यार है सीप का मोती जिस को
रेत साहिल की दुआ देती है

गिरती बूंदों से लिपट कर मिट्टी
अपने दुख दर्द भुला देती है

बहते रस्ते पे थिरकती नाव
याद बचपन की दिला देती है

चाँद खामोश खड़ा रहता है
मौज तूफान मचा देती है

– स्वाति सानी “रेशम “

دل تو فریاد کیا کرتا ہے
زیست فرمان سنا دیتی ہے

شاخ سے پھول گرا  کر کے  ہوا
تیرے آنے کا پتا دیتی ہے

گل کو دو بوند پلا کر شبنم
پیاس صحرا  کی بجھا دیتی ہے

گنگناتی ہوئی  اک یاد تری
بجھتے شعلوں کو ہوا دیتی ہے

پیار ہے سیپ کا موتی جس کو
ریت ساحل کی دعا دیتی ہے

گرتی بوندوں سے لپٹ کر مٹی
اپنے دکھ درد بھلا دیتی ہے

بہتے رستے پہ تھرکتی ناؤ
یاد بچپن کی دلا دیتی ہے

چاند خاموش کھڑا رہتا ہے
موج طوفان مچا دیتی ہے

سواتی ثانی ریشمؔ –

Image by Kadumago artista conceitual Kadumago from Pixabay

Akele ghar mein roshan daan se sooraj jhalakta hai

अकेले घर में रोशन दान से सूरज झलकता है
उदासी आह भरती है तो बाम ओ दर सिसकता है

लहू बहता है पावों से चमन में कांटे इतने हैं
यहाँ ना गुल महकता है, औ ना बुलबुल चहकता है

घटा ऐसी उमड़ती है सितारे डूब जाते हैं
तो बरसों की सियाही खत्म कर दीपक दमकता है

किसी टूटे हुए तारे की ख्वाहिश कौन करता है
के ठंडी चाँदनी में भी वो शोला सा दहकता है

नज़र आती है रह रह के किरन उम्मीद की अक्सर
अंधेरी रात में जैसे कोई जुगनू चमकता है

किनारे से खफा हो कर नदी मुंह मोड़ लेती है
मगर साहिल के सीने में नदी का दिल धड़कता है

कहीं चंदन कहीं केसर मो’अत्तर है फज़ा सारी
ये शफ़क़त है बुजुर्गों की जो मेरा घर महकता है

— स्वाति सानी “रेशम”

اکیلے گھر میں روشن دان سے سورج جھلکتا ہے
اداسی آہ بھرتی ہے تو بام و در سسکتا ہے

لہو بہتا ہے پاؤں سے چمن میں کاٹیں اتنے ہیں
یہاں نا گل مہکتا ہے او نا بلبل چہکتا ہے

گھٹا ایسی امڈتی ہے ستارے ڈوب جاتے ہیں
تو برسوں کی سیاہی ختم کر دیپک دمکتا ہے

کسی ٹوٹے ہوئے تارے کی خواہش کون کرتا ہے
کہ ٹھنڈی چاندنی میں بھی وہ شعلہ سا دہکتا ہے

نظر آتی ہے رہ رہ کے کرن امید کی اکثر
اندھیری رات میں جیسے کوئی جگنو چمکتا ہے

کنارے سے خفہ ہو کر ندی منہ موڑ لیتی ہے
مگر ساہل کے سینے میں ندی کا دل دھڑکتا ہے

کہیں چندن کہیں کیسر معطر ہے فضا ساری
یہ شفقت ہے بزرگوں کی جو میرا گھر مہکتا ہے

سواتی ثانی ریشمؔ —

Photo by Jon Eric Marababol on Unsplash

Ye sannata dunia pe bhari padega

अनाओं पे अपनी अगर तू अड़ेगा
तो तूफान से किस तरह फिर लड़ेगा

तू साये से अपने यूं कब तक डरेगा
कभी न कभी तुझ को लड़ना पड़ेगा

क़फ़स में परिंदा है पर फड़फड़ाता
अभी क़ैद में है, कभी तो उड़ेगा

किया नक़्श पत्ते को दीवार पर तो
ख़िज़ाॅं हो या सावन, न अब वो झड़ेगा

ये खामोशी अब शोर करने लगी है
ये सन्नाटा दुनिया पे भारी पड़ेगा

– स्वाति सानी “रेशम”
اناؤں پہ اپنی اگر تو اڑے گا
تو طوفان سے کس طرح پھر لڑے گا

تو سائے سے اپنے یوں کب تک ڈرے گا
کبھی نا کبھی تجھ کو لڑنا پڑے گا

قفس میں پرندہ ہے پر پھڑپھڑاتا
ابھی قید میں ہے، کبھی تو اُڑے گا

کِیا نقش پتّے کو دیوار پر تو
خزاں ہو یا ساون، نہ اب وہ جھڑے گا

یہ خاموشی اب شور کرنے لگی ہے
یہ سناٹا دنیا پہ بھاری پڑے گا

سواتی ثانی ریشمؔ –

Photo by Simon Wijers on Unsplash

 

Saans ki dori ka bandhan ho gaya

साँस की डोरी का बंधन हो गया
ज़िंदा रहना भी एक उलझन हो गया

अक्स देखा फिर वो दर्पन खो गया
जिस्म सुलगा और जोगन हो गया

तप चुकी जब आग चूल्हे में  नयी
तन बदन मिट्टी का बर्तन हो गया

सारा दिन तपता रहा था आँच में
शाम होते ही वो कुंदन हो गया

जब थकन को ओढ़ कर वो सो गया
सुबह उस का जिस्म ईन्धन हो गया

बाप का साया उठा जब सर से तो
सूना  उस के घर का आँगन हो गया

बुझ चली थी रोशनी उम्मीद की
और फिर एक दीप रोशन हो गया

– स्वाति सानी “रेशम”

سانس کی ڈوری کا بندھن ہو گیا
زندہ رہنا بھی اک الجھن ہو گیا

عکس دیکھا پھر  وہ درپن کھو گیا
جسم سلگا اور جوگن  ہو گیا

تپ چکی جب آگ چولہے میں نئی
تن بدن مٹی کا  برتن ہو گیا

سارا دن تپتا رہا تھا آنچ میں
شام ہوتے  ہی وہ کندن ہو گیا

جب تھکن کو اوڑھ کر وہ سو گیا
صبح اس کا جسم ایندھن ہو گیا

باپ کا سایہ اٹھا جب سر سے تو
سونا اس کے گھر کا آنگن ہو گیا

بُجھ چلی تھی روشنی امید کی
اور پھر اک دیپ روشن ہو گیا

-سواتی ثانی ریشمؔ

Photo by Safal karki on Unsplash

Muhabbaton ki roshni badhayi jaye

सियह है  रात, राह तो सुझाई जाये
फलक पे बिंदी चांद की लगाई जाये

मुझे भी हक़ है तुझ से इख्तिलाफ़ का
ज़माने को ये बात भी बताई जाये

ये नक्शा खींचे चाहे जितनी सरहदें
ऐ दोस्त अब ये दुश्मनी मिटाई जाये

अना ही उस की जंग पर है आमादा
हजर को रागिनी क्या सुनाई जाये

दिलों में नफरतों की आग जलती है
मुहब्बतों की रोशनी बढ़ाई जाये

– स्वाति सानी “रेशम”

सियह – अंधेरी
इख्तिलाफ – असम्मति, मतभेद
सरहद – सीमा
अना – अहंकार, दंभ
हजर – पत्थर

سیہ  ہے رات راہ تو سجھائی  جائے
فلک پے بندی چاند کی  لگائی جائے

مجھے بھی حق ہے تجھ سے اختلاف کا
زمانے کو یہ بات بھی بتائی جائے

یہ نقشہ کھینچے چاہے جتنی سرحدیں
اے دوست اب یہ دشمنی مٹائی جائے

انا ہی اس کی جنگ پر ہے آمادا
حجر کو راگنی کیا سنائی جائے

دلوں میں نفرتوں کی آگ جلتی ہے
محبتوں کی روشنی بڑھائی جائے

سواتی ثانی ریشمؔ –

Dariya khud pyaase se paani maange

کاغز کا ٹکڑا بھی کہانی مانگے
بیتی ہوئی راتوں کی نشانی مانگے

اترا کرتی ہے جب گلوں پے شبنم
دل آج وہی شام سہانی مانگے

وہ آگ جو سینے میں جلا کرتی ہے
اس کے قصے بھی شعلہ بیانی مانگے

رک جائے جو پلکوں پے تو آنسو کہنا
بہہ جائے تو موجوں کی روانی مانگے

خاموشی نے بدل دئے سب مفہوم
الفاظ اس کے نئے معانی مانگے

اپنے ہی ہونے کی نشانی مانگے
دریا خود پیاسے سے پانی مانگے

 

काग़ज़ का टुकड़ा भी कहानी माँगे
बीती हुई रातों की निशानी माँगे

उतरा करती है जब गुलों  पे शबनम
दिल आज वही शाम सुहानी माँगे

वो आग जो सीने में जला करती है
उस के क़िस्से  भी शोला-बयानी माँगे

रुक जाये जो पलकों में तो आंसू कहना
बह जाये तो मौजों की रवानी माँगे

खामोशी ने बदल दिए सब मफहूम
अल्फ़ाज़ उस के नये म’आनी माँगे

अपने ही होने की निशानी माँगे
दरिया खुद प्यासे से पानी माँगे

Photo by Patrick Hendry on Unsplash

Ye chahat ki ada teri qayamat hai. Ek ghazal

मिरे ज़िम्मे तिरे घर की निज़ामत है
ये चाहत की अदा तेरी क़यामत है

शिकायत है! शिकायत है! शिकायत है!
तिरी हर बात बस ला’नत मलामत है

सफ़र से थक के आने पर मिली तस्कीं
ये देखा जब कि मेरा घर सलामत है

शिकायत क्यों करो नाकारा बैठे हो
कि सुस्ती मौत ही की तो अलामत है

बड़ी मुश्किल से खुलते हैं ये दरवाज़े
मिरे दिल के किवाड़ों में क़दामत है

– स्वाति सानी “रेशम”

مرے ذمے ترے گھر کی نظامت ہے
یہ چاہت کی ادا تیری قیامت ہے

!شکایت ہے! شکایت ہے! شکایت ہے
تری ہر بات بس لعنت ملامت ہے

سفر سے تھک کے آنے پر ملی تسکیں
یہ دیکھا جب کہ میرا گھر سلامت ہے

شکایت کیوں کرو ناکارا بیٹھے ہو
کہ سستی موت ہی کی تو علامت ہے

بڑی مشکل سے کھلتے ہیں یہ دروازے
مرے دل کے کواڑوں میں قدامت ہے

سواتی ثانی ریشم —

एक अकेला शेर ایک اکیلا شعر

ये लीडर सच नहीं कहते कभी हम से
सियासत है, न कह इस को क़यादत है

یہ لیڈر سچ نہیں کہتے کبھی ہم سے
سیاست ہے، نہ کہہ اس کو قیادت ہے

Photo by Arthur Savary on Unsplash