Safar

बहुत पुरानी बात है 
ये बात आज की नहीं 
बरस गुज़र गए कई 
मगर मुझे है याद सब 
कि एक दिन हुआ था यूँ 
मुझे वहीं मिला था वो 
जहां पे रास्ते थे दो 
जहां पे मिल रहे थे वो 
वहीं से हम भी साथ हो
के साथ ही निकल पड़े
सफर कि इब्तिदा हुई
 
फिज़ाऐं रंग-बार थीं 
चमन में भी बहार थी 
हवा में इक सुरूर था 
नई नई थी चाहतें 
नए नए से प्यार का 
नया नया खुमार था 
जिधर भी देखती थी मैं 
वही नजर में था मिरी 
वो मेरा पहला प्यार था 
वो मेरा दिल नशीन था
सफर बहुत हसीन था 

मैं इस से आगे क्या कहूँ
कि इतना तो यक़ीन था
मुझे भी चाहता है वो 
फिर उस ने मेरे नाम को 
सितारों से  लिखा था यूँ 
कि जगमगाती रात थी 
चटक रही थी चाँदनी 
बिखर रहे थे हरसिंगार 
तमाम पेड़ के तले 
बड़ी हसीं थी ज़िंदगी 
सफर भी पुर सुकून था 

कई बरस गुजर गए 
न जाने कितने रास्ते 
न जाने कितनी मंज़िलें 
मिलीं हमें सफर में पर 
नज़र ज़रा बदल गई
मिरा खयाल था मगर 
कि ये ज़रा सी बात है
दिलों में प्यार अब भी है 
ज़रा सी हैं ये मुश्किलें 
हमारी राह में मगर 
सफर में दोनों साथ हैं 

फिर एक दिन की बात है 
कहा था उस ने मुझ से ये  
मुझे न तुम से प्यार है 
न तुम पे एतबार है 
न जान तुम मेरी हो अब 
न तुम पे जाँनिसार हूँ  
कि तुम से कुछ गिला नहीं 
न तुम से शिकवा है कोई 
हमारी राह है जुदा
मैं कुछ न कह सकी उसे  
सफर कि बात करती क्या 
 
क्या सोच कर चली थी मैं 
ये फ़िक्र दिल से लग गई 
खड़ी हूँ किस मक़ाम पर
क्या बात ऐसी हो गई 
क्या मुझ में कुछ कमी रही 
क्यूँ उस ने मुझ से ये कहा 
कि साथ अब नहीं हैं हम 
हमारी राहें हैं जुदा 
मैं खुद को कोसने लगी 
क्या सब कुसूर मेरा था?
सफर पे छूटा साथ क्यूँ ?

ये साँस उस के नाम की
लबों पे भी उसी का नाम 
वो मेरा हम सफर तो था 
वो दोस्त भी तो था मेरा 
दिलों में कितना प्यार था 
वो खत्म कैसे हो गया 
बदल के मेरी ज़िंदगी 
वो अपनी राह चल दिया 
अब और कुछ नहीं यहाँ 
मैं क्या करूंगी जी के भी 
सफर अधूरा रह गया 
 
मिरा ख्याल था कि वो 
पलट के देखेगा मुझे 
बुलाएगा फिर एक बार 
कहेगा साथ ही चलो 
ज़रा सी थी शिकायतें 
अदावतें व रंजिशें 
हम इन को पीछे छोड़ दें 
चलो कि साथ ही चलें 
मगर न ऐसा कुछ हुआ 
खमोश वो चला गया 
सफर में मुझ को छोड़ कर 

है उस के दिल में क्या छुपा 
मुझे गुमान भी न था 
लिया है उस ने फैसला 
मुझे तो इल्म भी न था 
जो साथ उम्र भर का था 
वो पल में राएगाँ हुआ
वो अपने ग़म में मुब्तला
खयाल तक न था मेरा 
दुखी तो मैं भी थी मगर
ये सोच उठ खड़ी हुई  
दुखों को पीछे छोड़ कर
सफर अकेले तय करूँ?

अकेली रह गई हूँ अब  
मैं ये भी जानती नहीं 
कि राह का अकेलापन 
तड़प घुटन उदासियाँ 
मैं इन का क्या करूंगी अब 
डरी डरी सी रात है 
डरी हुई खमोशीयाँ 
हरे हैं मेरे ज़ख्म सब 
नया सिरा मिलेगा कब 
न जाने क्या करूंगी मैं 
सफर कटेगा कैसे अब? 

अज़ाब है ये ज़िंदगी 
कि मुश्किलें ही मुश्किलें 
जहां भी देखूँ हैं खड़ी  
मैं ढूंढती हूँ रास्ते 
तलाशती हूँ हौसला
ये अश्क — इन का क्या करूँ
मैं कैसे इन को रोक लूँ 
बिखर चुकी है ज़िंदगी
किसी तरह संवार लूँ 
कहाँ मिलेंगे रास्ते 
सफर है मुश्किलों भरा 
 
चिराग़ बुझ गये हैं सब 
ये राहें सूझती नहीं 
मगर जो है वो सच ही है   
अकेले चलना है मुझे 
कहा फिर अपने आप से 
कि खुद के वास्ते चलूँ
मैं भूल जाऊँ बीते दिन 
मैं आगे ही बढ़ी चलूँ 
मैं ख्वाब देखूँ फिर नये 
मैं राह इक नई चुनूँ  
सफर पे फिर निकल चलूँ
 
जो राह ढूंढती हूँ मैं 
वो मिल ही जाएगी कभी 
यक़ीन है मुझे कि मैं
अकेले ही सही मगर 
मुसीबतों मलमतों 
को पीछे छोड़ती हुई 
ये सोच कर चलूँगी मैं 
नये हैं रास्ते तो क्या 
यही है एक ज़िद मिरी 
मैं आगे बढ़ती जाऊँगी
सफर तो तय करूंगी मैं

शजर नहीं हैं राह में 
न साया सर पे ही कोई 
कि रुक के थोड़ा सांस लूँ
न कोई ऐसी ही डगर 
जहां पे मैं बनाऊँ घर 
मगर मेरी नज़र में तो 
सितारों का है क़ाफ़िला 
तलाश ये नहीं है सहल
हैं टेढ़े तिरछे रास्ते 
नई है रहगुज़र मगर 
सफर पे चल पड़ी हूँ मैं

है राह ये कठिन बहुत 
मगर है दिल में हौसला 
मैं हर कदम पे मुश्किलों 
से लड़ती भिड़ती जाऊँगी 
अकेली ही बहुत हूँ मैं
किसी के साथ की मुझे 
नहीं है कोई चाह अब
ये शुक्र है कि ज़िंदगी 
की राह मैं ने खुद चुनी 
उसी पे फिर मैं चल पड़ी  
सफर गुज़र तो जाएगा  

बहुत पुरानी बात है 
ये बात आज की नहीं 
बरस गुज़र गए कई 
मगर मुझे है याद सब  
बला की वो मुसीबतें 
सबक़ नये सीखा गईं 
शिकस्ता हाल में थी जब 
मैं गिर के उठ खड़ी हुई 
मैं उस मक़ाम पे हूँ अब 
जहां है सिर्फ रोशनी 
सफर है अर्श तक मिरा

– स्वाति सानी ‘रेशम’
بہت پرانی بات ہے
یہ بات آج کی نہیں
برس گزر گئے کئی
مگر مجھے ہے یاد سب
کہ ایک دن ہوا تھا یوں
مجھے وہیں ملا تھا وہ
جہاں پہ راستے تھے دو
جہاں پہ  مل رہے تھے وہ
وہیں سے ہم بھی ساتھ ہو
کے ساتھ ہی نکل پڑے
سفر کی ابتدا ہوئی

فضائیں رنگ بار تھیں
چمن میں بھی بہار تھی
ہوا میں اک سرور تھا
نئی نئی تھی چاہتیں
نئے نئے سے  پیار کا
نیا نیا خمار تھا
جدھر بھی دیکھتی تھی میں
وہی نظر میں تھا مری
وہ میرا پہلا  پیار تھا
وہ میرا دل نشین تھا
سفر بہت حسین تھا

میں اِس کے آگے کیا کہوں
کہ اتنا تو یقین تھا
مجھے بھی چاہتا ہے وہ
پھر اُس نے میرے نام کو
ستاروں  سے لکھا تھا یوں
کہ جگمگاتی رات تھی
چٹک رہی تھی چاندنی
بکھر رہے تھے ہر سنگار
تمام پیڑ کے تلے
بڑی حسیں تھی زندگی
سفر بھی پر سکون تھا
 
کئی برس گزر گئے
نہ جانے کتنے راستے
نہ جانے کتنی منزلیں
ملیں ہمیں سفر میں پر
نظر ذرا بدل گئی
مرا خیال تھا مگر
کہ یہ ذرا سی بات ہے
دلوں میں  پیار اب بھی ہے
ذرا سی ہیں  یہ مشکلیں
ہماری راہ میں مگر
سفر میں دونوں ساتھ ہیں

پھر ایک دن کی بات ہے
کہا تھا اُس نے مجھ سے یہ
مجھے نہ تم سے  پیار ہے
نہ تم پہ اعتبار ہے
نہ جان تم مری ہو اب
نہ تم پہ جاں نثار ہے
کہ تم سے کچھ گِلا نہیں
نہ تم سے شکوہ ہے کوئی
ہماری راہ ہے جدا
میں کچھ نہ کہہ سکی اُسے
سفر کی بات کرتی کیا

کیا سوچ کر چلی تھی میں
یہ فکر  دل سے لگ گئی
 کھڑی ہوں کس مقام پر
کیا بات ایسی ہو گئی
کیا مجھ میں کچھ کمی رہی
کیوں اس نے مجھ سے یہ کہا
کہ ساتھ اب نہیں ہیں ہم
ہماری راہیں ہیں جدا
میں خود کو کوسنے لگی
کیا سب قصور میرا تھا؟
سفر پہ چھوٹا ساتھ کیوں؟

یہ سانس اس کے نام کی 
لبوں  پہ بھی اسی کا نام
 وہ میرا ہم سفر تو تھا
وہ دوست بھی تو تھا میرا
دلوں میں اتنا  پیار تھا
وہ ختم کیسے ہو گیا
بدل کے میری زندگی
وہ اپنی راہ چل دیا
اب اور کچھ نہیں یہاں
میں کیا کروں گی جی کے بھی
سفر ادھورا رہ گیا

مرا خیال تھا کہ وہ
پلٹ کے دیکھے گا مجھے
بلائے گا پھر ایک بار
کہے گا ساتھ ہی چلو
ذرا سی تھیں شکایتیں
عداوتیں و رنجشیں
ہم ان کو پیچھے چھوڑ دیں
چلو کہ ساتھ ہی چلیں
مگر نہ ایسا کچھ ہوا
خموش وہ چلا گیا
سفر میں مجھ کو چھوڑ کر

ہے اُس کے دل میں کیا چھپا
مجھے گمان بھی نہ تھا
لیا ہے  اُس نے فیصلہ
مجھے تو علم بھی نہ تھا
جو ساتھ عمر بھر کا تھا
وہ پل میں رائیگاں ہوا
وہ اپنے غم میں مبتلا
خیال تک نہ تھا میرا
دکھی تو میں بھی تھی مگر
یہ سوچ اٹھ کھڑی ہوئی
دکھوں کو پیچھے چھوڑ کر
سفر اکیلے طے کروں؟

اکیلی رہ گئی ہوں  اب
میں یہ بھی جانتی نہیں
کہ راہ کا اکیلا پن
تڑپ، گھٹن، اداسیاں
میں ان کا کیا کروں گی اب
ڈری ڈری سی رات ہے
ڈری ہوئی خموشیاں
ہرے ہیں میرے زخم سب
نیا سرا ملے گا کب
نہ جانے کیا کروں گی میں
سفر کٹے گا کیسے اب؟

عذاب ہے یہ زندگی
کہ مشکلیں ہی مشکلیں
جہاں بھی دیکھوں ہیں کھڑی
میں ڈھونڈتی ہوں راستے
تلاشتی ہوں حوصلہ
یہ اشک — ان کا کیا کروں
میں کیسے ان کو روک لوں
بکھر چکی ہے زندگی
کسی طرح سنوار لوں
کہاں ملیں گے راستے
سفر ہے مشکلوں بھرا

چراغ بجھ گئے ہیں سب
یہ راہوں سوجھتی نہیں
مگر جو ہے، وہ سچ ہی ہے
اکیلے چلنا ہے مجھے
کہا پھر اپنے آپ سے
کہ خود کے واسطے چلوں
میں بھول جاؤں بیتے دن
میں آگے  ہی بڑھی  چلوں
میں  خواب    دیکھوں  پھر نئے
میں راہ اک نئی چنوں
سفر پہ پھر نکل چلوں

جو راہ ڈھونڈتی ہوں میں
وہ مل ہی جائے گی کبھی
یقین ہے مجھے کہ میں
اکیلی ہی سہی مگر
مصیبتوں، ملامتوں
کو پیچھے چھوڑتی ہوئی
یہ سوچ کر چلوں گی میں
نئے ہیں راستے تو کیا
یہی ہے ایک ضد مری
 میں آگے بڑھتی جاؤں گی
سفر تو طے کروں گی میں

شجر نہیں ہیں راہ میں
نہ سایہ سر پہ ہی کوئی
کہ رک کے تھوڑا سانس لوں
نہ کوئی ایسی ہی ڈگر
جہاں پہ میں بناؤں گھر
مگر مری نظر  میں تو
ستاروں کا ہے قافلہ
تلاش یہ نہیں  ہے سہل
ہیں ٹیڑھے ترچھے راستے
نئی ہے رہ گزر مگر
سفر پہ چل پڑی ہوں میں

ہے  راہ  یہ کٹھن بہت
مگر ہے دل میں حوصلہ
میں ہر قدم  پہ مشکلوں
سے لڑتی، بڑھتی جاؤں گی
اکیلی ہی بہت ہوں میں
کسی کے ساتھ کی مجھے
نہیں ہے کوئی چاہ اب
یہ شکر ہے کہ زندگی
کی راہ میں نے خود چُنی
اُسی پہ پھر میں چل پڑی
سفر گزر تو  جائے گا

بہت پرانی بات ہے
یہ بات آج کی نہیں
برس گزر گئے کئی
مگر مجھے ہے یاد سب
بلا کی وہ مصیبتیں
سبق نئے سکھا گئیں
شکستہ حال میں تھی جب
میں گر کے اٹھ کھڑی ہوئی
میں اُس مقام پہ ہوں اب
جہاں ہے صرف روشنی
سفر ہے عرش تک مرا

سواتی ثانی ریشمؔ –

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Suno miri jaaN ye apne aansu chhupaye rakhna

सुनो मिरी जाँ ये अपने आँसू छुपाए रखना 
तुम अपनी मजबूरीयों को उन से बचाए रखना 

अंधेरी रातें जो बन के तूफान तुम को घेरें 
हवा कि ज़द में चराग़ अपने जलाए रखना 

है मुश्किलों से भरी ये दुनिया मगर सुनो तुम 
लबों पे हरदम ये मुस्कुराहट सजाए रखना 

किसी कि चाहत में अपना तन मन लुटा न देना 
मोहब्बतों में तुम अपनी हस्ती बचाए रखना 

ज़माने भर कि निगाहें तुम पर उठेंगी लेकिन 
मक़ाम अपना मिज़ाज अपना बनाए रखना
سنو مری جاں  یہ  اپنے آنسو چھپائے  رکھنا
تم اپنی مجبوریوں   کو ان سے    بچا ئے  رکھنا

اندھیری  راتیں جو بن کے طوفان تم کو گھیریں
ہوا کی ذد  میں  چراغ     اپنے  جلا ئے رکھنا

ہے مشکلوں سے بھری  یہ  دنیا مگر  سنو تم
لبوں پہ  ہر دم   یہ مسکراہٹ سجا ئے رکھنا

کسی کی چاہت میں اپنا تن من لٹا نہ دینا
محبتوں میں  تم  اپنی ہستی بچا ئے رکھنا

زمانے بھر کی نگاہیں تم پر اٹھیں گی لیکن
مقام اپنا  مزاج  اپنا  بنا ئے رکھنا

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Dunia miri nigaah ki qaiel nahiN rahi

दुनिया की बात क्या कहें अच्छी भली रही 
अंदाज़ दोस्ती का था पर दुश्मनी रही 

हर दर्द मिट चुका था मगर बेकसी रही
साहिल क़रीब था मिरे पर तिशनगी रही 

इक उम्र चुक गयी है यही सोचते हुए 
ग़म खत्म हो चुके हैं मगर ज़िंदगी रही 

ख्वाबों का क्या वजूद रहा जागने के बाद 
फिर भी मैं दिन में ख्वाब बड़े देखती रही 

कह तो दिया था तुम ने मिरी जान प्यार से
लेकिन ये कब कि बात थी मैं सोचती रही 

बोला तो था कि याद रखो गांठ बांध लो 
किस बात की कही थी यही भूलती रही 

दुनिया मिरी निगाह की क़ाइल नहीं रही 
वरना ये देखती कि मैं क्या देखती रही 
دنیا کی بات  کیا کہیں اچھی بھلی رہی
انداز  دوستی کا تھا پر دسمنی رہی

ہر درد مٹ چکا تھا مگر بیکسی رہی
ساحل قریب تھا  مرے پر تشنگی رہی

اک عمر   چک  گئی  ہے   یہی سوچتے ہوئے
غم ختم ہو چکے ہیں مگر زندگی رہی

خوابوں کا کیا وجود  رہا جاگنے کے بعد
پھر بھی میں دن میں خواب بڑے دیکھتی رہی

کہہ تو دیا تھا تم نے  مری جان   پیار سے  
لیکن یہ کب کی بات تھی میں سوچتی رہی

بولا تو تھا  کہ یاد رکھو  گانتھ باندھ لو
کس بات کی کہی تھی یہی بھولتی رہی   

دنیا مری نگاہ کی قائل نہیں رہی
ورنہ یہ دیکھتی کہ میں کیا دیکھتی  رہی

Dhoop meiN jis ka sayaa sar par hota hai

धूप में जिस का साया सर पर होता है 
एक शजर हर घर में अक्सर होता है 

बूढ़े घर के दरवाजों का भारीपन
बचपन की यादों का मेहवर होता है 

झरना दरिया झील समुंदर  सब खामोश
शोर मगर कुछ उन के अंदर होता है  

बात लबों तक आ  आ कर थम जाती है 
इश्क़ मोहब्बत प्यार में ये डर  होता है 

आग का दरिया पार वही कर पाते हैं 
जिन  की आँख में एक समुंदर होता है 

अपना अपना जी कर सब मर जाते हैं 
आगे पीछे पीर-ओ-सनीचर होता है 

चैन की नींद उसी बिस्तर पर आती है 
दो-एक गज़ जो ज़मीं  के अंदर होता है

دھوپ میں جس کا سایہ سر پر ہوتا ہے
ایک شجر ہر گھر میں اکثر ہوتا ہے

بوڑھے گھر کے دروازوں کا بھاری پن
بچپن  کی یادوں کا محور ہوتا ہے

جھرنا دریا جھیل سمندر سب خاموش
شور مگر کچھ ان کے اندر ہوتا ہے

بات لبوں تک آ  آ کر تھم جاتی ہے
 عشق محبت   پیار میں  یہ  ڈر ہوتا ہے 

آگ کا دریا پار وہی کر پاتے  ہیں
جن  کی آنکھ میں ایک سمندر  ہوتا ہے

اپنا اپنا جی کر سب مر جاتے ہیں 
آگے پیچھے  پیر و سنیچر ہوتا ہے 

چین کی نیند اسی  بستر پر آتی ہے
دو اک گز جو  زمیں کے اندر ہوتا ہے

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KhayaloN khwaboN ka ik nagar thaa

खयालों ख्वाबों का इक नगर था 
वहीं पे मेरा भी एक घर था 
और उस के दीवार ओ दर के अंदर 
मेरा जहां था मिरी किताबें 
मैं उन मे खो कर फ़साने सुनती 
और अपनी भी इक कहानी बुनती
तुम्हें सुनाती तो देखती मैं
तुम्हारी आँखों में वो ही सपने
जो मेरी आँखें भी देखती थीं  
सजीले दिन और नशीली शामें 
अंधेरी रातों में मेरे दिलबर 
हजारों तारों की वो बारातें 
मगर हक़ीक़त ये है कि ख्वाबों
की है जो दुनिया वो सच नहीं है 
मुझे खबर क्या कि तुम किताबों
की बस्तियों से चले गये थे  
तुम्हारी बातों को याद कर के
हजारों खत भी लिखे थे मैं ने   
न मैं ने समझ न मैं ने जाना
कि तुम तो ख्वाबों की इस डगर से
भी काफी आगे निकाल चुके थे
उलझ रहे थे खयाल सारे
जो ख्वाब थे सब उजड़ गये थे
किताब-ए-दिल के वरक़ भी सारे
फटे पड़े थे बिखर गये गये थे
वही नगर है वहीं है घर पर
अब उस की दीवार-ओ-दर के अंदर
है बस अंधेरा, है बस अंधेरा !
खयालों ख्वाबों का इक नगर था 
वहीं पे मेरा जो एक घर था 
خیالوں خوابوں کا اک نگر تھا
وہیں پہ میرا  بھی ایک گھر تھا
اور اس کے دیوار و در کے اندر
مرا جہاں تھا مری کتابیں
میں ان  میں کھو کر فسانے سنتی
اور اپنی بھی اک کہانی بُنتی
تمہیں سناتی تو دیکھتی میں
تمہاری آنکھوں میں وہ ہی سپنے
جو میری آنکھیں بھی دیکھتی تھیں
سجیلے دن اور نشیلی شامیں
اندھیری راتوں میں میرے دلبر
ہزاروں تاروں کی وہ براتیں
مگر حقیقت یہ ہے کہ خوابوں
کی ہے جو دنیا وہ سچ نہیں ہے
مجھے خبر کیا کہ تم  کتابوں
کی بستیوں سے چلے گئے  تھے
تمہاری باتوں کو یاد کر کے
ہزاروں خط بھی لکھے تھے میں نے
نہ میں نے سمجھا نہ میں نے جانا
کہ تم تو خوابوں کی اس ڈگر سے
بھی کافی آگے نکل چکے تھے
الجھ رہے تھے خیال سارے
جو خواب تھے سب اجڑ گئے تھے
کتابِ دل کے ورق بھی سارے
پھٹے پڑے تھے  بکھر گئے تھے
وہی نگر ہے وہیں ہے گھر پر
اب اس کی دیوار و در کے اندر
ہے بس اندھیرا، ہے بس اندھیرا
خیالوں خوابوں کا اک نگر تھا
وہیں پہ میرا جو ایک گھر تھا

Main ne phir se poochha kuch be-sabri se

मैं फिर से पूछा कुछ बेसब्री से
खत भेजा क्या उस ने चाँद की नगरी से

किरनों किरनों बात चली, ऐ बादल सुन
लहरों लहरों ख्वाब थिरकते शररी से

शाम ढले कुछ ख़ालीपन महसूस हुआ
दर्द कहीं जा बैठ था दोपहरी से

क्या क्या कह के दिल को मैं ने बहलाया
खेल नए जब निकले उस की गठरी से

मेरे दिल को कैसे उस ने तोड़ दिया
पानी छलका जाए जी की गगरी से

धूप की शिद्दत को भी सह सकती हूँ मैं
तुम मत बरसो कह देना उस बदरी से

मैं ने उन सब दरवाज़ों को तोड़ दिया
शाम ढले जो लग जाते थे देहरी से

– स्वाति सानी ‘रेशम’
میں نے پھر سے پوچھا کچھ بے صبری سے
خط بھیجا کیا اس نے چاند کی نگری سے

کرنوں کرنوں بات چلی، اے بادل سن
لہروں لہروں خواب تھرکتے شرری سے

شام ڈھلے کچھ خالی پن محسوس ہوا
درد  کہیں   جا  بیٹھا  تھا دوپہری سے

کیا کیا کہہ کے دل کو میں نے بہلایا
کھیل نئے جب نکلے اس  کی گٹھری سے

 میرے دل کو کیسے اس نے توڑ دیا
 پا نی چھلکا جائے  جی کی گگری سے

دھوپ کی شدت کو بھی سہہ سکتی ہوں میں
تم مت  برسو کہہ  دینا اس  بدری سے

میں نے  ان سب  دروازوں کو   توڑ دیا
 شام ڈھلے  جو لگ جاتے تھے دیہری سے

سواتی ثانی ریشمؔ –

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Ye Bheege Patthar Sunehri Kirno ke teer kha kar pighal rahe hain

ये भीगे पत्थर सुनहरी किरणों के तीर खा कर पिघल रहे हैं
सुनहरी किरणों के मोल दे कर सितारे भी सारे ढल रहे हैं

तुम्हें ये ग़म है की रात फिर से दुखों की चादर बिछानी होगी
ये रात आई है इस लिए तो फलक पे तारे निकल रहे हैं

इन आंसुओ के बहा के दरिया समंदरों में लुटा के मोती
सियाह रातों की तीरगी को भी रोशनी में बदल रहे हैं

कभी ऐ ‘रेशम’ ज़रा तो ठहरो समंदरों में उतर के देखो
उछलती मौजों पे किस तरह से थिरकते ज़र्रे मचल रहे हैं

है प्यासे होंटों की ये कहानी समंदरों का है खारा पानी
वो मीठे पानी के हैं जो दरिया उन्हें समंदर निगल रहे हैं

یہ بھیگے پتھر سنہری کرنوں کے تیر کھا کر پگھل رہے ہیں
سنہری کرنوں کے مول دے کر ستارے بھی سارے ڈھل رہے ہیں

تمہیں یہ غم ہے کہ رات پھر سے دکھوں کی چادر بچھانی ہوگی
پہ رات آئی ہے اس لئے تو فلک پے تارے نکل رہے ہیں

ان آنسووں کے بہا کے دریا سمندروں میں لٹا کے موتی
سیاہ راتوں کی تیرگی کو بھی روشنی میں بدل رہے ہیں

کبھی اے ریشمؔ   زرا تو ٹھہرو سمندروں میں اتر کے دیکھو
اچھلتی موجوں  پے  کس طرح سے تھرکتے ذرے مچل رہے ہیں

ہے پیاسے ہوٹوں کی یہ کہانی سمندروں کا ہے کھارا پانی
 وہ میٹھے پانی کے ہیں جو دریا  انہیں سمندر نگل رہے ہیں

Jab mulaqaat ho to aisi ho

पूछते हो कि शाम कैसी हो
दिल को बहलाती याद की सी हो

आँख भर देख लूँ मैं आज उसे
क्या पता कल की सुबह कैसी हो

प्यार करना अगरचे जुर्म हुआ
फिर सज़ा उस की चाहे जैसी हो

देख कर उस को मैं ने सोचा था
ज़िंदगी हो तो काश ऐसी हो

धूप में प्यार भी गया था झुलस
दोपहर अब कभी न वैसी हो

जिस की बातें फ़साना होती थीं
ज़िंदगी उस की जाने कैसी हो

उस का होना भी क्या ज़रूरी है
चाँदनी रात हो, उदासी हो

– स्वाति सानी “रेशम”

پوچھتے ہو کہ شام کیسی ہو
دل کو بہلاتی یاد کی سی ہو

آنکھ بھر دیکھ لوں میں آج اسے
کیا پتہ کل کی صبح کیسی کو

پیار کرنا اگر چہ جرم ہوا
پھر سزا اس کی چاہے جیسی ہو

دیکھ کر اس کو میں نے سوچا تھا
زندگی ہو تو کاش ایسی ہو

دھوپ میں پیار بھی گیا تھا جھلس
دو پہر اب کھبی نہ ویسی ہو

جس کی باتیں فسانہ ہوتی تھیں
زندگی اس کی جانے کیسی ہو

اس کا ہونا بھی کیا ضروری ہے
چاندنی رات ہو اداسی ہو

سواتی ثانی ریشمؔ –

Tum samajhte ho main bebas hun bikhar jaungi

तुम समझते हो मैं बेबस हूँ, बिखर जाऊँगी
इतनी कमज़ोर नहीं हूँ मैं कि डर जाऊँगी

तुम ग़लत हो तो ये मानो भी कि हो सच में ग़लत
मुझ पे इल्ज़ाम धरोगे तो मुकर जाऊँगी

तुम मुझे रोक नहीं पाओगे जंजीरों से
पा-ब-जौलाँ ही सही, अपनी डगर जाऊँगी

बहता पानी हूँ मैं, दरिया भी, समंदर भी मैं
मुझ को मत रोको जिधर चाहूँ उधर जाऊँगी

ज़िंदगी अपनी ही शर्तों पे बसर कर के मैं
अपने एहसास के शोलों से संवर जाऊँगी

ऐब लगती मिरी आजाद मिज़ाजी तुम को
एक हंगामा खड़ा होगा जिधर जाऊँगी

— स्वाति सानी “रेशम”
تم سمجھتے ہو میں بے بس ہوں بکھر جاؤں گی
اتنی کمزور نہیں ہوں میں کہ ڈر جاؤں گی

تم غلط ہو تو یہ مانو بھی کہ ہو سچ میں غلط
مجھ پے الزام دھرو گے تو مکر جاؤں گی

تم مجھے روک نہیں پاؤگے زنجیروں سے
پا بہ جولاں ہی سہی اپنی ڈگر جاؤں گی

بہتا پانی ہوں میں دریا بھی سمندر بھی میں
مجھ کو مت روکو جدھر چاہوں ادھر جاؤں گی

زندگی اپنی ہی شرطوں پے بسر کر کے میں
اپنے احساس کے شعلوں سے سنور جاؤں گی

عیب لگتی مری آزاد مزاجی تم کو
ایک ہنگامہ کھڑا ہوگا جدھر جاؤں گی

سواتی ثانی ریشمؔ –