Dunia miri nigaah ki qaiel nahiN rahi

दुनिया की बात क्या कहें अच्छी भली रही 
अंदाज़ दोस्ती का था पर दुश्मनी रही 

हर दर्द मिट चुका था मगर बेकसी रही
साहिल क़रीब था मिरे पर तिशनगी रही 

इक उम्र चुक गयी है यही सोचते हुए 
ग़म खत्म हो चुके हैं मगर ज़िंदगी रही 

ख्वाबों का क्या वजूद रहा जागने के बाद 
फिर भी मैं दिन में ख्वाब बड़े देखती रही 

कह तो दिया था तुम ने मिरी जान प्यार से
लेकिन ये कब कि बात थी मैं सोचती रही 

बोला तो था कि याद रखो गांठ बांध लो 
किस बात की कही थी यही भूलती रही 

दुनिया मिरी निगाह की क़ाइल नहीं रही 
वरना ये देखती कि मैं क्या देखती रही 
دنیا کی بات  کیا کہیں اچھی بھلی رہی
انداز  دوستی کا تھا پر دسمنی رہی

ہر درد مٹ چکا تھا مگر بیکسی رہی
ساحل قریب تھا  مرے پر تشنگی رہی

اک عمر   چک  گئی  ہے   یہی سوچتے ہوئے
غم ختم ہو چکے ہیں مگر زندگی رہی

خوابوں کا کیا وجود  رہا جاگنے کے بعد
پھر بھی میں دن میں خواب بڑے دیکھتی رہی

کہہ تو دیا تھا تم نے  مری جان   پیار سے  
لیکن یہ کب کی بات تھی میں سوچتی رہی

بولا تو تھا  کہ یاد رکھو  گانتھ باندھ لو
کس بات کی کہی تھی یہی بھولتی رہی   

دنیا مری نگاہ کی قائل نہیں رہی
ورنہ یہ دیکھتی کہ میں کیا دیکھتی  رہی

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