کاغز کا ٹکڑا بھی کہانی مانگے
بیتی ہوئی راتوں کی نشانی مانگے
اترا کرتی ہے جب گلوں پے شبنم
دل آج وہی شام سہانی مانگے
وہ آگ جو سینے میں جلا کرتی ہے
اس کے قصے بھی شعلہ بیانی مانگے
رک جائے جو پلکوں پے تو آنسو کہنا
بہہ جائے تو موجوں کی روانی مانگے
خاموشی نے بدل دئے سب مفہوم
الفاظ اس کے نئے معانی مانگے
اپنے ہی ہونے کی نشانی مانگے
دریا خود پیاسے سے پانی مانگے
काग़ज़ का टुकड़ा भी कहानी माँगे
बीती हुई रातों की निशानी माँगे
उतरा करती है जब गुलों पे शबनम
दिल आज वही शाम सुहानी माँगे
वो आग जो सीने में जला करती है
उस के क़िस्से भी शोला-बयानी माँगे
रुक जाये जो पलकों में तो आंसू कहना
बह जाये तो मौजों की रवानी माँगे
खामोशी ने बदल दिए सब मफहूम
अल्फ़ाज़ उस के नये म’आनी माँगे
अपने ही होने की निशानी माँगे
दरिया खुद प्यासे से पानी माँगे
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