अपने घर से ज़रा दूर चले जाने पर फिर कई कई रोज़ घर ना आ पाने पर अपनों से मुलाक़ात न हो पाने पर किसी सूरजमुखी के खिलखिलाने पर सोंधी मिट्टी की ख़ुशबू याद आने पर माँ का भेजा अचार मिल जाने पर नानी के क़िस्सों की याद आने पर मिट्टी की ठंडी सुराही याद आने पर हूँ परेशान बहुत अपनी परेशानी पर महसूस हो रहा था कुछ टूटता था पर अरमाँ के टांग झूले पेड़ों की शाख पर खेलता था बचपन आँगन में पेड़ पर — स्वाति सानी “रेशम” |
اپنے گھر سے زرا دور چلے جانے پر اپنوں سے ملاقات نہ ہو پانے پر کسی سورج مکھی کے کھلکھلانے پر سوندھی مٹی کی خشبو یاد آنے پر ماں کا بھیجا اچار مل جانے پر نانی کے قسوں کی یاد آنے پر مٹی کی سراحی یاد آنے پر ہوں پریشان بہت اپنی پریشانی پر محسوس ہو رہا تھا کچھ ٹوٹتا تگا پر ارماں کے ٹانگ جھولے پیڈوں کی شاخ پر کھیلتا تھا بچپن آنگن کے پیڈ پر — سواتی ثانی ریشم |