दिलों को पिरोने वाला अब वो तागा नहीं मिलता
रिश्तों में नमीं प्यार में सहारा नहीं मिलता
यूँ ही बैठे रहो, चुप रहो, कुछ न कहो
लोग मिल जातें हैं दोस्त गवारा नहीं मिलता
वो जिसे हम तका करते थे सहर तक
अंधेरी रातों को अब वो सितारा नहीं मिलता
रेत बंद हाथों से फिसलती जाती है
वक्त जो टल जाता है दोबारा नहीं मिलता
डूब जाने दे दरियाओं में मुझे ऐ हमदम
अब वो सुकून भरा किनारा नहीं मिलता
Excellent ghazal
There has to be minimum of five couplets to form a Ghazal.
Shukriya. Added one more sher to make it complete.
रेत बंद हाथों से फिसलती जाती है
वक्त जो टल जाता है दोबारा नहीं मिलता
bahut khub sher waah waah
Hello Swati, this is really nice read. You might as well want to visit my blog once ‘Ibteda’ url: http://sdmod07.blogspot.in
bahut khub, kaash main aisa likh pata, awaiting your updates on post!