पुराने पन्नों वाली
वो डायरी
अक्सर ज़िन्दा हो जाती है,
जब खुलती है
मुस्कुराती है,
पहले प्यार की हरारत
खिलखिलाती है
कर के खुछ शरारत
रुलाती भी है
वो एक कविता
एक सूखा ग़ुलाब
कुछ आँसुओं से मिटे शब्द…
कुछ मीठी,
कुछ नमकीन सी यादें
निकल आतीं हैं जब
बिखरे पीले पन्नों से
मैं भूल जाती हूँ
इस उम्र की दोपहर को
और फिर से जी लेती हूँ
कुछ अनमोल पल.
excellent !!!!!!! swati hum ketne bhi old ho jaye magar purani yadee achee lagati hai chahee woh kitni hi dard bhari ho. apne bahut khub likha hai dairy ko lekar.
Shukriya, Karuna Shree.
From Harindranath Chattopadhyay, is it ?
Yes.