After I am gone…

There is this thing about being,
a fragile song that we all sing.
And then darkness comes beckoning,
for death is certain for all those living.

Here I have a request sincere,
when you are alone you must not fear.
So even when I am gone, my dear,
just look around and you will find me near.

You’ll find me in the pages that I write,
and in the poems that I recite.
In the sunshine bright,
and in the moonbeam at night.

It is possible that once in a while,
you will miss me halfway through a mile.
But you must then think of me with a smile
and my life would be worthwhile.

 

Photo by Johannes Plenio on Unsplash

ग़ज़ल

दिलों को पिरोने वाला अब वो तागा नहीं मिलता
रिश्तों में नमीं प्यार में सहारा नहीं मिलता

यूँ ही बैठे रहो, चुप रहो, कुछ न कहो
लोग मिल जातें हैं दोस्त गवारा नहीं मिलता

वो जिसे हम तका करते थे सहर तक
अंधेरी रातों को अब वो सितारा नहीं मिलता

रेत बंद हाथों से फिसलती जाती है
वक्त जो टल जाता है दोबारा नहीं मिलता

डूब जाने दे दरियाओं में मुझे ऐ हमदम
अब वो सुकून भरा किनारा नहीं मिलता

 

यादें

पुराने पन्नों वाली
वो डायरी
अक्सर ज़िन्दा हो जाती है,
जब खुलती है

मुस्कुराती है,
पहले प्यार की हरारत
खिलखिलाती है
कर के खुछ शरारत

रुलाती भी है
वो एक कविता
एक सूखा ग़ुलाब
कुछ आँसुओं से मिटे शब्द…

कुछ  मीठी,
कुछ नमकीन सी यादें
निकल आतीं हैं जब
बिखरे पीले पन्नों से

मैं भूल जाती हूँ
इस उम्र की दोपहर को
और फिर से जी लेती हूँ
कुछ अनमोल पल.

तलाश

रास्ता तो दिखता है....
रास्ता तो दिखता है....

कुछ नज़र नहीं आता
बहुत धुंद है, ठंड़ है,  कोहरा है यहाँ
रास्ता तो दिखता है
मगर क्या यहीं मुझे चलना है?
आगे बढ़ना है? या ठहर जाना है?
क्या कोई पगडंडी कहीं जुड़ती है?
या कोई राह निकलती है कहीं?

बहुत धुंद है, ठंड़ है,  कोहरा है यहाँ
कुछ भी नज़र नहीं आता
मेरी मंज़िल कहाँ है?
है भी या नहीं?
जो मैने देखी थी
क्या वो थी एक मरीचिका?
क्या मेरी लालसा अनंत है?

मेरा गंतव्य है कोई?
या इन धुंद भरी अकेली राहों पर
यूँ ही भटकना है मुझे
मगर…
कब तक?
कहाँ तक?
कुछ भी तो नज़र नहीं आता!