जब से तुम आये हो
ऐ नये साल
धूप कहीं खो सी गयी है
सुर्ख गुलाब के इंतज़ार की आस भी
अब खत्म हो गयी है
सितारे दूर नील गगन में
धरती को तकते
चाँद उदास
बेताब बादलों परे
बिल्कुल अकेला
ऐ नये साल
इस बरस तुम
कितने फीके हो
सतरंगी, पचरंगी वेश छोड
क्यों धूसर बने, कहो?
Hi swati. I am looking for javed akhtar saab’s ‘Waqt’ poem which is on youtube. I cannot understand it as recited – could you please post it in hindi…please? Thanks.
regards and Love
sujata
Yes, Sujatha. Waqt is from Javed Saheb’s poetry collection “Tarkash” – I have the book. Will soon post it on my blog. Keep watching this space.