मरीचिका
हर तूफान के बाद
लहलहने लगती है सुहाने सपनों सी
बुलाने लगती है पास, और पास अपने
पाँव निर्थरक ही बढ़ उठते हैं उस ओर
पर वह परे हटती जाती है
और खो जाती है
रेत के एक और अंधड में
फिर कभी किसी तूफान के बाद
आस दिलाने के लिये
मरीचिका
हर तूफान के बाद
लहलहने लगती है सुहाने सपनों सी
बुलाने लगती है पास, और पास अपने
पाँव निर्थरक ही बढ़ उठते हैं उस ओर
पर वह परे हटती जाती है
और खो जाती है
रेत के एक और अंधड में
फिर कभी किसी तूफान के बाद
आस दिलाने के लिये