आज फिर तुम्हें देखकर खयाल आया
कि हमारे बीच ये कैसा नाता है
जिसे तोड़ना मुनासिब नहीं
इस लंबे सफर में
मेरे हमकदम –
हम ज़रूर कुछ देर रुक जातें है
किसी मकाम पर
मगर फिर निकल पड़ते हैं
अगले पड़ाव को …
इक दूसरे के सहारे बिना
हम क्या करेंगे
मेरे हमसफर, मेरे हमइनाँ
जब किसी दिन किसी एक की
जीवन समिधा चुक जायेगी ?
कल 06/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत शुक्रिया, यशवन्त जी.
सही बात है! एक दूसरे के साथ की ऐसी आदत पड़ जाती है कि ये सोचकर भी डर लगता है…
~सादर!!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | आभार |
Tamasha-E-Zindagi
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शुक्रिया
बहुत गहन …. सुंदर भाव
धन्यवाद, संगीता