तू अपने जैसा अछूता खयाल दे मुझको
मैं तेरा अक्स हूँ अपना जमाल दे मुझको
मैं टूट जाउँगी लेकिन झुक न सकूंगी कभी
मजाल है किसी पैकर में डाल दे मुझको
मैं अपने दिल से मिटा दूंगी तेरी याद मगर
तू अपने ज़ेहन से पहले निकाल दे मुझको
मैं संगे कौह की मांनिंद हूँ न बिखरूंगी
न हो यकीं जो तू उछाल दे मुझको
खुशी खुशी बढ़ूं खो जाऊं तेरी हस्ती में
अना के ख़ौफ से “सानी” निकाल दे मुझको
— ड़ा. ज़रीना सानी
अक्स – प्रतिबिंब /reflection
जमाल – सौंर्दय /beauty
पैकर – िजस्म / body (here it means mould)
संगे कौह – पहाड़ का पत्थर / stone (here it means strong as a stone)
अना – अहंभाव /ego
This Ghazal was published in “Kaumiraj” (date not known)
Great Gazal, misra bahut khub hai har ek sher kabile taarif he. bahut khub. waah waah.
dedicated to her…
kaise bahta hai khole apni bahein tu sikha mujhko
main baadbani hoon teri, ek samandar hawa de mujhko
Thank you, Sudipta. She was an amazing woman.
aha….an amazing person..paak ehsaasein na mard hote hain na aurat 🙂
reflects on her writing
🙂 You’d perhaps enjoy her site http://zarinasani.org too.
Yes, looks interesting; I will go through all the writings.