Very few poets move me as much as Faiz Ahmed Faiz does. His poetry pierces my heart, bleeds it and then heals it and inspires it. What can I say more.. I keep searching for words to describe my emotions, my feelings and then all I have to do is open a book and read Faiz Ahmed Faiz.
अब क्यूँ उस दिन का जिक्र करो
जब दिल टुकड़े हो जायेगा
और सारे ग़म मिट जायेंगे
जो कुछ पाया खो जायेगा
जो मिल न सका वो पायेंगे
ये दिन तो वही पहला दिन है
जो पहला दिन था चाहत का
हम जिसकी तमन्ना करते रहे
और जिससे हरदम डरते रहे
ये दिन तो कितनी बार आया
सौ बार बसे और उजड़ गये
सौ बार लुटे और भर पाया
अब क्यूँ उस दिन का जिक्र करो
जब दिल टुकडे हो जायेगा
और सारे ग़म मिट जायेंगे
तुम ख़ौफ़ो-ख़तर से दरगुज़रो
जो होना है सो होना है
गर हंसना है तो हंसना है
गर रोना है तो रोना है
तुम अपनी करनी कर गुज़रो
जो होगा देखा जायेगा
–फ़ैज़ अहमद फ़ैज़