मैं निराशा की गर्त में डूबने वालों में नहीं
आशा की कोर को छूना जानती हूं ।
यथार्थ को जी कर सपनों को पालती हूं
इस छोर पर खडी हो उस छोर की
बाट जोहने वालों में नहीं
मैं अंतहीन होना जानती हूं ।
विध्वंसक न सही
मैं हौले से आंचल के कोर से
खुद अपने आंसू पोछना जानती हूं ।
शब्दों की गहराइ में उतरती भी हूँ
पर उथले कीचड को पहचानती हूं
ज़रा सी ठेस से टूटने वालों में मैं नहीं,
अपने टुकडों को समेटना जानती हूं ।
निराशा के अंधेरों में डूबने वालों में नहीं
मैं आशा की हर सहर बिताना जानती हूं ।
Amazing!! I’ve become your fan, ma’am. Your all poems have real class in them. They’re all so meaningful. I too write but visiting your blog has encouraged me to touch your level. Thanks a lot !!
Thank you for your gracious comment. There are many talented poets around, you should look up to them – I just try to pen my thoughts in a pretty much amateur manner 🙂
From where do you get inspiration, ma’am?
very good peom and ………………..
waqt ke chaman se har taza lamha chunkar
zindgi ki haar mein use pirona main jaanti hoon…
just tried your way…good to hear the word ‘baat’ after some time.
Thank you, Sudipta. A nice addition to my poem, I am honored.