गमों की रहगुज़र पर जब अश्कों ने भी साथ न दिया
तो हम चल पडे अकेले ही मंज़िल की तलाश में
आंख की कोर पर बूंद मानों लटक कर रह गयी
और धीरे धीरे हालात की आंधी ने उसे भी सोख लिया
गमों की रहगुज़र पर जब अश्कों ने भी साथ न दिया
तो हम चल पडे अकेले ही मंज़िल की तलाश में
आंख की कोर पर बूंद मानों लटक कर रह गयी
और धीरे धीरे हालात की आंधी ने उसे भी सोख लिया
आँखों के मोतियों को जिस खूबी से आपने कविता की माला में पिरोया हे वो वाकेई तारीफ के काबिल हे
शुक्रिया.
very touching lines!!
aj khojte khojte kya mil gaya///// i am a poet but this poem is no words to describe it….kajal trivedi
Thank you, Kajal, for the appreciation.
आंख की कोर पर बूंद मानों लटक कर रह गयी
और धीरे धीरे हालात की आंधी ने उसे भी सोख लिया —- nice read