अश्क

गमों की रहगुज़र पर जब अश्कों ने भी साथ न दिया
तो हम चल पडे अकेले ही मंज़िल की तलाश में
आंख की कोर पर बूंद मानों लटक कर रह गयी
और धीरे धीरे हालात की आंधी ने उसे भी सोख लिया

6 thoughts on “अश्क”

  1. आँखों के मोतियों को जिस खूबी से आपने कविता की माला में पिरोया हे वो वाकेई तारीफ के काबिल हे

  2. aj khojte khojte kya mil gaya///// i am a poet but this poem is no words to describe it….kajal trivedi

  3. आंख की कोर पर बूंद मानों लटक कर रह गयी
    और धीरे धीरे हालात की आंधी ने उसे भी सोख लिया —- nice read

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