खयालों ख्वाबों का इक नगर था वहीं पे मेरा भी एक घर था और उस के दीवार ओ दर के अंदर मेरा जहां था मिरी किताबें मैं उन मे खो कर फ़साने सुनती और अपनी भी इक कहानी बुनती तुम्हें सुनाती तो देखती मैं तुम्हारी आँखों में वो ही सपने जो मेरी आँखें भी देखती थीं सजीले दिन और नशीली शामें अंधेरी रातों में मेरे दिलबर हजारों तारों की वो बारातें मगर हक़ीक़त ये है कि ख्वाबों की है जो दुनिया वो सच नहीं है मुझे खबर क्या कि तुम किताबों की बस्तियों से चले गये थे तुम्हारी बातों को याद कर के हजारों खत भी लिखे थे मैं ने न मैं ने समझ न मैं ने जाना कि तुम तो ख्वाबों की इस डगर से भी काफी आगे निकाल चुके थे उलझ रहे थे खयाल सारे जो ख्वाब थे सब उजड़ गये थे किताब-ए-दिल के वरक़ भी सारे फटे पड़े थे बिखर गये गये थे खयालों ख्वाबों का इक नगर था वहीं पे मेरा जो एक घर था अब उस की दीवार-ओ-दर के अंदर है बस अंधेरा, है बस अंधेरा ! | خیالوں خوابوں کا اک نگر تھا وہیں پہ میرا بھی ایک گھر تھا اور اس کے دیوار و در کے اندر مرا جہاں تھا مری کتابیں میں ان میں کھو کر فسانے سنتی اور اپنی بھی اک کہانی بُنتی تمہیں سناتی تو دیکھتی میں تمہاری آنکھوں میں وہ ہی سپنے جو میری آنکھیں بھی دیکھتی تھیں سجیلے دن اور نشیلی شامیں اندھیری راتوں میں میرے دلبر ہزاروں تاروں کی وہ براتیں مگر حقیقت یہ ہے کہ خوابوں کی ہے جو دنیا وہ سچ نہیں ہے مجھے خبر کیا کہ تم کتابوں کی بستیوں سے چلے گئے تھے تمہاری باتوں کو یاد کر کے ہزاروں خط بھی لکھے تھے میں نے نہ میں نے سمجھا نہ میں نے جانا کہ تم تو خوابوں کی اس ڈگر سے بھی کافی آگے نکل چکے تھے الجھ رہے تھے خیال سارے جو خواب تھے سب اجڑ گئے تھے کتابِ دل کے ورق بھی سارے پھٹے پڑے تھے بکھر گئے تھے خیالوں خوابوں کا اک نگر تھا وہیں پہ میرا جو ایک گھر تھا اب اس کی دیوار و در کے اندر ہے بس اندھیرا، ہے بس اندھیرا |
Main ne phir se poochha kuch be-sabri se
मैं फिर से पूछा कुछ बेसब्री से खत भेजा क्या उस ने चाँद की नगरी से किरनों किरनों बात चली, ऐ बादल सुन लहरों लहरों ख्वाब थिरकते शररी से शाम ढले कुछ ख़ालीपन महसूस हुआ दर्द कहीं जा बैठ था दोपहरी से क्या क्या कह के दिल को मैं ने बहलाया खेल नए जब निकले … Continue reading Main ne phir se poochha kuch be-sabri se
Ye Bheege Patthar Sunehri Kirno ke teer kha kar pighal rahe hain
ये भीगे पत्थर सुनहरी किरणों के तीर खा कर पिघल रहे हैं सुनहरी किरणों के मोल दे कर सितारे भी सारे ढल रहे हैं तुम्हें ये ग़म है की रात फिर से दुखों की चादर बिछानी होगी ये रात आई है इस लिए तो फलक पे तारे निकल रहे हैं इन आंसुओ के बहा के … Continue reading Ye Bheege Patthar Sunehri Kirno ke teer kha kar pighal rahe hain
Jab mulaqaat ho to aisi ho
पूछते हो कि शाम कैसी हो दिल को बहलाती याद की सी हो आँख भर देख लूँ मैं आज उसे क्या पता कल की सुबह कैसी हो प्यार करना अगरचे जुर्म हुआ फिर सज़ा उस की चाहे जैसी हो देख कर उस को मैं ने सोचा थाज़िंदगी हो तो काश ऐसी हो धूप में प्यार … Continue reading Jab mulaqaat ho to aisi ho
Tum samajhte ho main bebas hun bikhar jaungi
तुम समझते हो मैं बेबस हूँ, बिखर जाऊँगी इतनी कमज़ोर नहीं हूँ मैं कि डर जाऊँगी तुम ग़लत हो तो ये मानो भी कि हो सच में ग़लत मुझ पे इल्ज़ाम धरोगे तो मुकर जाऊँगी तुम मुझे रोक नहीं पाओगे जंजीरों से पा-ब-जौलाँ ही सही, अपनी डगर जाऊँगी बहता पानी हूँ मैं, दरिया भी, समंदर … Continue reading Tum samajhte ho main bebas hun bikhar jaungi
Kahi jo baat wo sach thii
कही जो बात वो सच थी मगर मानी नहीं जाती मिरे छोटे से दिल की ये परेशानी नहीं जाती वो बेटा है मैं बेटी हूँ यही एक फ़र्क़ है हम में मिरी क़िस्मत में है पिंजरा वाँ शैतानी नहीं जाती किसी के आँख का पानी किसी के दिल की वीरानी अगर परदे के पीछे हो … Continue reading Kahi jo baat wo sach thii
Wo be-wafa bhii ho to kya
वो बेवफ़ा भी हो तो क्या ये ऐसी भी खता नहीं ये ज़िंदगी भी चार दिन में देगी क्या दग़ा नहीं? ज़बान पे सवाल थे प लब मिरे सिले रहे वो मुंतज़िर खड़ा रहा प मैं ने कुछ कहा नहीं वो राह अपनी चल पड़ा न मुड़ के देखा उस ने फिर मैं बुत बनी … Continue reading Wo be-wafa bhii ho to kya
फ़ना (فنا)
तुम्हारी चाहत पहाड़ पर मुंजमिद बर्फ की मानिंद मेरी गर्म हथेली के लम्स से पिघलती हुई मेरे हाथों से निकल कर पहाड़ों, जंगलों, और रास्तों को पार करती हुई तेज़ी से बहने लगती है मगर सूरज की तपिश से बच नहीं पाती और धीरे धीरे ये पिघलती, बहती चाहत तुम्हारी भाप बन कर फ़ना हो … Continue reading फ़ना (فنا)
Jaagi ratoN ka ai’tbaar kahan
जागी रातों का ए’तबार कहाँमुझ को ख़्वाबों पे इख़्तियार कहाँ नींद बिस्तर पे जागी रहती हैदिल का जाने गया क़रार कहाँ रक़्स परवाने का है नज़रों में शम’अ का कोई राज़ दार कहाँ बनते बनते बनेगी बात कभी अभी उस को है मुझ से प्यार कहाँ मुस्कुराहट बिखेर दो तुम तो ग़म भी होता है … Continue reading Jaagi ratoN ka ai’tbaar kahan
Meri pyaas ko samjho tum… dariya mere andar hai
मेरी प्यास को समझो तुम दरिया मेरे अंदर है कितने ज़ख्मों को सींचूँ मैं जिस्म का पैकर जर्जर है यादें मेरे माज़ी की बौछारों का नश्तर है सहरा सहरा चीख उठा है गुलशन गुलशन बंजर है साहिल तन्हा बैठा है प्यास भी एक समंदर है एक तबस्सुम होंटों पर अपनी रूह का ज़ेवर है जब … Continue reading Meri pyaas ko samjho tum… dariya mere andar hai