मैं!

मैं निराशा की गर्त में डूबने वालों में नहीं
आशा की कोर को छूना जानती हूं ।
यथार्थ को जी कर सपनों को पालती हूं
इस छोर पर खडी हो उस छोर की
बाट जोहने वालों में नहीं
मैं अंतहीन होना जानती हूं ।
विध्वंसक न सही
मैं हौले से आंचल के कोर से
खुद अपने आंसू पोछना जानती हूं ।
शब्दों की गहराइ में उतरती भी हूँ
पर उथले कीचड को पहचानती हूं
ज़रा सी ठेस से टूटने वालों में मैं नहीं,
अपने टुकडों को समेटना जानती हूं ।
निराशा के अंधेरों में डूबने वालों में नहीं
मैं आशा की हर सहर बिताना जानती हूं ।

6 thoughts on “मैं!”

  1. Amazing!! I’ve become your fan, ma’am. Your all poems have real class in them. They’re all so meaningful. I too write but visiting your blog has encouraged me to touch your level. Thanks a lot !!

    1. Thank you for your gracious comment. There are many talented poets around, you should look up to them – I just try to pen my thoughts in a pretty much amateur manner 🙂

  2. waqt ke chaman se har taza lamha chunkar
    zindgi ki haar mein use pirona main jaanti hoon…

    just tried your way…good to hear the word ‘baat’ after some time.

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