नील कमल

नील कमल

वो बूंद जो
बादलों में खेलती थी
आज तपती धरा की आग़ोश में
समाने को बेचैन हो उठी
पर फिर जब नील कमल
को इठलाते देखा
तो उसी की हो चली
डूब गयी
खो गयी
सो गयी

— स्वाति