پہن کے چنری رنگوں والی شام مسکرا اٹھی
پلک جھپکتے دن گیا او رات جگمگا اٹھی
سواتی ثانی ریشمؔ –
पहन के चुनरी रंगों वली शाम मुस्कुरा उठी
पलक झपकते दिन गया औ रात जगमगा उठी
-स्वाति सानी “रेशम”
Photo by Siti Rahmanah Mat Daud on Unsplash
پہن کے چنری رنگوں والی شام مسکرا اٹھی
پلک جھپکتے دن گیا او رات جگمگا اٹھی
سواتی ثانی ریشمؔ –
पहन के चुनरी रंगों वली शाम मुस्कुरा उठी
पलक झपकते दिन गया औ रात जगमगा उठी
-स्वाति सानी “रेशम”
Photo by Siti Rahmanah Mat Daud on Unsplash
موت کا کالا سایااب دیہاتوں پر منڈراتا ہےسیاست دانوں نےجس کا فائدہ اٹھائا تھااس وبا کا کہر تو امیروں نے ڈھایا تھاغریب کیوں اس کامعاوضہ دیں؟سواتی ثانی ریشمؔ – मौत का काला साया अब देहातों पर मंडराता है सियासत दानों ने जिस का फायदा उठाया था उस वबा का कहर तो अमीरों ने ढाया था … Continue reading Maut ka saaya
चाहे जितने गहरेदफन कर दोहमारी आवाज़ेंवो फिर उग आयेंगीबीज की तरहधूल में भीलहलहा जायेंगी– स्वाति सानी “रेशम” چاہے جتنے گہرے دفن کر دو ہماری آوازیںوہ پھر اگ آیں گیبیج کی طرح دھول میں بھیلہلہا جایں گیسواتی ثانی ریشمؔ – Photo by Ehimetalor Akhere Unuabona on Unsplash
अकेले घर में रोशन दान से सूरज झलकता है उदासी आह भरती है तो बाम ओ दर सिसकता है लहू बहता है पावों से चमन में कांटे इतने हैं यहाँ ना गुल महकता है, औ ना बुलबुल चहकता है घटा ऐसी उमड़ती है सितारे डूब जाते हैं तो बरसों की सियाही खत्म कर दीपक दमकता … Continue reading Akele ghar mein roshan daan se sooraj jhalakta hai
चली मस्तानों की टोली के अब मौसम बदलता हैहै रंगों से भरी झोली कि अब मौसम बदलता है चमन में शोर ओ ग़ुल हर ओर, रंगों की हैं बरसातेंबिरज में आज है होरी कि अब मौसम बदलता है सदा कोयल की जब आये शजर पे बौर भर आये महक उठती है अमराई कि अब मौसम … Continue reading ke ab mausam badalta hai
अनाओं पे अपनी अगर तू अड़ेगा तो तूफान से किस तरह फिर लड़ेगा तू साये से अपने यूं कब तक डरेगा कभी न कभी तुझ को लड़ना पड़ेगा क़फ़स में परिंदा है पर फड़फड़ाता अभी क़ैद में है, कभी तो उड़ेगा किया नक़्श पत्ते को दीवार पर तोख़िज़ाॅं हो या सावन, न अब वो झड़ेगा … Continue reading Ye sannata dunia pe bhari padega
हर हादसे के बादजा-ब-जा सुनाई देती हैंज़ख़्मी आवाज़ेंदर्द से बिलबिलातीडरी सहमी आवाज़ेंरुक रुक के पुकारती हैंऔर फिरन सुने जाने परकराहती हुईथम जाती हैंऔरदुनियादारी में मुब्तलाहम सबदेखते रहते हैंचुपचापचुपचापचुपचाप –स्वाति सानी “रेशम” ہر حادثے کے بعد جابجا سنائی دیتی ہیںزخمی آوازیںدرد سے بلبلاتیڈری سہمی آوازیںرک رک کے پکارتی ہیںاور پھرنہ سنے جانے پرکراہتی ہوئیتھم جاتی ہیںاوردنیاداری میں … Continue reading Haadse ke baad
गर्मी की तपिश को सूरज का बारिश को सूखे होंटों का सावन को पीले पत्तों का खामोशी को सन्नाटे का एक पंछी को तुम पिंजरे का और चाँद को रात सियाही का किस बात का डर दिखलाओगे? क्या उन को खौफ़ जताओगे? मज़दूर को सूखी रोटी का किसान को बंजर खेती का दीवाने को असीरी … Continue reading डर (ڈر)
साँस की डोरी का बंधन हो गया ज़िंदा रहना भी एक उलझन हो गया अक्स देखा फिर वो दर्पन खो गया जिस्म सुलगा और जोगन हो गया तप चुकी जब आग चूल्हे में नयी तन बदन मिट्टी का बर्तन हो गया सारा दिन तपता रहा था आँच में शाम होते ही वो कुंदन हो गया … Continue reading Saans ki dori ka bandhan ho gaya
Abused in life by the powerful abused in death by even more powerful she was just a pawn and then someone said don’t give it so much importance it’s really not of much consequence People must get used to it after all she is a woman and a Dalit. – Swati Sani Photo by Cullan … Continue reading Insensitivity