वीरानी

अब न रहा वो साज़ जो सात सुर बजायेगा
टूट के निकलते हैं अल्फाज़ जुबाँ से
मीठी बातों से अब ये दिल न बहल पायेगा
पुराने किस्सों की मत करो बातें मुझसे
दर्द जो छिपा रक्खा था, फिर उभर आयेगा
मत दोहराओ चाँद के, तारों का किस्से
जख्म अभी सूखा नहीं है; छेड़ोगे तो तड़प जायेगा
इस वीराने में कौन रहता है, क्यूँ रहता है
किसे पड़ी है, कोई क्यूँ यहाँ आयेगा

–स्वाति

अब तो कोई आयेगा

crow
घर की देवढी पर बैठी मैं
कजरारे नैनों से ताकूं
सारे रस्ते सगरी बस्ती
सब सोते हैं, बस मैं जागूँ

भोर भये मैं देखूँ सूरज
शाम ढले मैं तारे बांचूँ
क्या आओगे आप सवेरे
या शाम चंदा के संग
आँचल थामे ये बाट निहारूँ

सूने आँगन धूप खिली फिर
फूल सजे बगिया में मेरी
छत पर बैठा कागा बोले
अब तो कोई आयेगा…

 

Photo by Tarique Sani